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हिंदी की दुर्दशा पर मंथन और समाधान

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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हिंदी की दुर्दशा पर मंथन और समाधान

आज हिंदी भाषी क्षेत्र ही क्या आप देश के किसी भी कोने में चले जाइये आपको हिंदी से अनभिज्ञ कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा I अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी हिंदी का प्रयोग सर्वोपरि है I यहाँ तक कि विदेशों में भी कई यूनिवर्सिटी में हिंदी पाठ्यक्रम लागू किया गया है क्यूंकि दुनिया ने ये माना है कि  भारत व्यापारिक रूप से एक बड़े बाज़ार के रूप में उभरा है और बिना हिंदी सीखे यहाँ टिक पाना मुमकिन नहीं है I
जब पूरा विश्व हिंदी की प्रभुसत्ता मानाने को तैयार है तो भारत में ऐसी क्या समस्या है ? दरअसल हिंदी अपने ही देश तो क्या अपितु पूरे विश्व में लोगों की जुबान तक तो पहुँच गयी परन्तु हम इसे पेट तक पहुँचाने में सफल नहीं हो पाए I आज भी हमारे देश में ऊँचे ओहदों में नौकरी पाने हेतु अंग्रेजी अनिवार्य है I आखिर हिंदी में ऐसा क्या नहीं है की एक प्रतिभावान युवा मात्र अंग्रेजी न आने की वजह से एक अंग्रेजी जानने वाले साधारण से युवा से पिछड़ जाता है Iभारतीय रक्षा अकादमी का ही उदहारण लीजिये वहां ज्यादातर अंग्रेजी माध्यम वाले युवक ही ऑफिसर बन पाते हैं I क्या हिंदी माध्यम में पड़ने वाला ग्रामीण युवक केवल अंग्रेजी न जानने की वजह से योग्य नहीं माना जा सकता आप इन परीक्षा में हिंदी को अनिवार्य बना दीजिये और अंग्रेजी को वैकल्पिक , फिर देखिये कैसे हिंदी माध्यम के विद्यालयों में भीड़ लगती है I जब हिंदी को रोटी कपडा और मकान देने वाली नौकरी से जोड़ दिया जायेगा फिर देखिये कैसे न हिंदी का गौरव बढने लगेगा I
कभी इस विषय पर मंथन किया है की हिंदी माध्यम वाले विद्यालयों से प्रशाशनिक सेवा में सबसे ज्यादा युवक सफल होते है ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए की प्रारंभ में अंग्रेजी माध्यम न होने की वजह से इन्हें प्रतिभावान होने के बावजूद हर परीक्षा में असफलता का मूंह देखना पड़ता  है परन्तु एक लम्बे समयांतराल के बाद ये अपनी अंग्रेजी में सुधार करते हैं और अपनी योग्यता को सिद्ध करके दिखाते हैं I एक अंग्रेजी माध्यम न होने की वजह से ये इतना इंतजार क्यों करें हिंदुस्तान में हिंदी को महत्वपूर्ण माना जाय न की किसी अन्य भाषा को I
जिस दिन हिंदी हिन्दोस्तान में गरीब को रोजगार दिलाने वाली भाषा बन जाएगी उसी दिन से संपूर्ण हिंदुस्तान में हिंदी का गौरव दिन दूना रात चौगुना बढने लगेगा I रोजगार की अनिवार्य भाषा बनाने से सभी अनिवार्य रूप से हिंदी सीखने लगेंगे तथा हिंदी का प्रयोग करने लगेंगे I सीधी सी बात है जब हम ही अपने देश में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनायेंगे या हिंदी को सम्मान नहीं देंगे तो हम विश्व से हिंदी के सम्मान की आशा कैसे कर सकते हैं I अंत में हिन्दी की दुर्दशा और समाधान  पर अपनी कविता के साथ इस अनुच्छेद को समाप्त करना चाहूँगा I

हिंदी की दुर्दशा
साल दर साल पीछे खिसकती रही है
हिंदी अपने ही मुल्क में सिसकती रही है
रोजगार दिलाने की भाषा न बन सकी
गरीबो के ऊँचे सपनो की आशा न बन सकी
अपनी जमीं में तरक्की की परिभाषा न बन सकी
जीवन के हर पायदान में किलसती रही है
हिंदी अपने ही ……………………..
बोलने में हिंदी आती हर किसी को लाज है
हिन्दोस्ताँ में ही न होते हिंदी में काज हैं
हिंदी को छोड़ अन्य भाषा में ही बजता हर साज है
अपने ही अस्तित्व की तलाश में  भटकती रही है
हिंदी अपने ही ………………………………

अपने ही वतन में हिंदी का सम्मान नहीं है
हिंदी दिवस में भी हिंदी में व्याख्यान नहीं है
कुछ हुक्मरानों को हिंदी का भी ज्ञान नहीं है
अपने ही सम्मान को स्वयं तरसती रही है
हिंदी अपने ही ……………………………

आम आदमी में महज निराशा बन के रह गयी
गरीबों के बीच गरीबी की भाषा बन के रह गयी
न जाने अब तक कितना अपमान सह गयी
देश के हर कोने में बिलखती रही है
हिंदी अपने ही ………………………..

हर ओहदे के लिए हिंदी को जरूरी बना डालो
हिंदी सीखना हर शख्श की मजबूरी बना डालो
हिंदी से अनभिज्ञ की शिक्षा  अधूरी बनो डालो
फिर देखो कैसे न बनती हिंदी की अपनी हस्ती है
फिर न हिंदी अपने मुल्क में सिसकती रहेगी
जहा नजर पड़ेगी खिलखिलाती हँसती रहेगी

दीपक पाण्डे

जवाहर नवोदय विद्यालय नैनीताल

263135

  1. no.9412902607

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