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आज मैं आपके समक्ष एक ऐसे ज़हर का वर्णन करना चाहूँगा जो कि इस पृथ्वी पर अजर अमर है और अनंत काल तक विद्यमान रहने वाला है और मुख्य बात तो यह है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हम इसके आदि भी हो चुके हैं
इस ज़हर का नाम है पॉलिथीन चूंकि इसका निर्माण रसायन विज्ञानं में एथीन के पॉलीमराइज़ेशन के द्वारा किया जाता है अतः इसका नाम पॉलिथीन रखा गया इसका मुख्य अवगुण यह है कि यह वातावरण में छोड़ दिए जाने पर हज़ारों साल तक अपघटित नहीं हो पाती तथा अनंत काल तक के लिए एक चिरस्थाई कूड़े का रूप धारण कर लेती है यदि इसे समाप्त करने के लिए जलाया जाय तो कई प्रकार की ज़हरीली गैसों को छोड़कर वायु को प्रदूषित करती है मिटटी में रहकर यह मृदा प्रदूषण का कारण बनती है इसके मिटटी में मिल जाने से धरती में उपस्थित पानी धरती के अंदर नहीं जा पाता तथा मिटटी की भी उर्वरा शक्ति धीरे धीरे कम होती जाती है इसकी वजह से अक्सर नालियों का प्रवाह रुक जाता है और सड़क पर गन्दगी प्रवाहित होने से रोग फैलने का खतरा बना रहता है नदियों के शुद्ध जल में मिलकर यह जल प्रदूषण का भी कारण बनती है
आजकल तो इसमें खाने पीने की चीज़ भी रखी जाने लगी हैं तथा डॉक्टरों ने भी यह शोध किया है कि एक निश्चित तापमान के पश्चात् भोजन इसके संपर्क में आने पर यह कुछ विषैले रसायन छोड़ती है जिनसे शरीर में कैंसर भी हो सकता है
अब सवाल यह पैदा होता है कि इन सब हानि के बावज़ूद भी हम इसका उपयोग क्यूँ करते हैं या यूं कहिये कि हम इसके उपयोग के आदि हो चुके हैं कि इससे होने वाले नूकसान को भी नज़र अंदाज़ करने लगे हैं और सरकार भी इस भयावह सच से अनभिज्ञ होकर बैठी है यदा कदा कुछ प्रांतीय सरकारों ने इसके प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाया है परंतु इसके उत्पादन पर ही प्रतिबन्ध क्यूँ नहीं क्यूंकि जब तक उत्पादन होता रहेगा प्रयोग तो होगा ही
अब कुछ विचार इस समस्या के निदान पर किया जाय इस समस्या का हल स्वयं सरकार के पास है सरकार को इस ज़हर के उत्पादन पर ही पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए इससे हमारे देश की कूड़े की समस्या का भी लगभग निदान हो जायेगा क्यूंकि इस देश में बिखरे कूड़े में सबसे ज्यादा प्रतिशत इस कभी न अपघटित होने वाले पॉलिथीन का है
यदि सरकार द्वारा यह कदम नहीं उठाया जाता तो हमें स्वयं ही आगे आना होगा और इसे उपयोग में ना लाने की कसम खानी होगी
याद कीजिये वह समय जब पॉलिथीन नहीं बनी थी तब भी हमारे सारे कार्यकलाप होते ही थे हमारी एक आदत थी बाजार जाते समय हमारे कन्धों में एक झोला हुआ करता था दूध लेने जाते समय सबके हाथों में एक स्टील का बर्तन (डोलची ) हुआ करती थी हमें फिर उसी आदत को वापस अपनाना होगा और कम से कम खुद को तो इसके प्रयोग से रोकना होगा
पॉलिथीन के बजाय जूट के थैलों के प्रयोग को बढ़ावा देना होगा इससे फायदा यह होगा की देश में जूट के थैलों के उत्पादन से लघु एवम कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और इन उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को ग्रामीणों को विशेष सब्सिडी भी देनी चाहिए इससे गांव में ही ग्रामवासियों को रोज़गार मिलेगा तथा बेरोज़गारी की समस्या का भी निदान होगा
पुराने कपड़ों के थैलों को बनाने को भी एक लघु उद्योग के रूप में लिया जा सकता है इससे रीसाइकिल की परंपरा बढ़ेगी तो आओ आज ही यह प्रण करें लें कि हम कपडे या जूट के बने थैलों का प्रयोग करेंगे तथा इस एक भी पॉलिथीन का प्रयोग कर इस धरती पर कभी ख़त्म ना होने वाले इस कूड़े का निर्माण नहीं करेंगे तथा एक नई निरोग मानवता की नींव रखेंगे
अंत में अपनी कविता के साथ इसका समापन करना चाहूँगा
फ़िज़ाओं में घुल रहा कैसा ये ज़हर है
इसकी चपेट में हर एक गांव शहर है
हर एक जन इसका ही आदि हो गया
इसके ही प्रयोग का फरियादी हो गया
प्रण करो अब इसका कोई साथ न देंगे
इसके प्रसार में अपना कोई हाथ न देंगे
मानव ने इसे बनाया मानव ही मिटाएगा
नए निर्माण से इससे निज़ात दिलाएगा
दीपक पाण्डे
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
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