CHINTAN JAROORI HAI
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आज फिर अपने महबूब को रुसवा नहीँ किया,
मस्जिद तो गये मगर सजदा नहीँ किया
हर मरतबा मसीहा हमेँ देता रहा दगा,
बन्दगी मेँ तेरी ए खुदा क्या क्या नहीँ किया
पत्थर को पूज पूज कर पत्थर ही बन गये,
मोम के इस बुत को जब पूरा गला दिया
जन्नत की कोई उम्मीद भी बाकि नहीँ रही,
खुद ही मेँ हम सिमट गये दोजख मेँ घर लिया
दीपक पाँडे नैनीताल
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