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आत्मग्लानि (लघु कथा)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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सुलतान शहर का बड़ा व्यापारी है पांच वक्त का नमाजी धार्मिक व्यक्ति I अबकी बार अपने पिता को हज भेजना चाहता है परन्तु वीज़ा मिलने में कुछ कठिनाई हो रही है I अतः वह शहर के नेता के पास गया सिफारिश के लिए नेता जी ने प्यार से घर बैठाया खैरियत पूछी कारण बताने पर नेता जी बोले कि तुम तो जानते ही हो दूसरी पार्टी का राज़ है हमारे एक एक काम पर सियासत की नज़र है यह काम मुश्किल है यह सुनते ही सुलतान के अब्बा भड़क उठे बोले ” बहुत देखा तुमको, तुम्हारे एक इशारे पर हमारे लोग पैसा देते हैं जरुरत पड़ने पर दंगे भी कराये जाते हैं और आज तुम हमारा काम नहीं करोगे अब हम यहां एक पल भी नहीं रुकेंगे ” इतना सुनते ही नेता जी मुस्कराते हुए बोले ” चचा नाराज़ मत हो ” और एक फ़ोन लगाया गया परन्तु यह क्या ये फ़ोन तो दूसरी पार्टी के उस कद्दावर नेता को था जिसके एक भाषण पर सांप्रदायिक दंगे हो जाया करते हैं इन दोनों में इतने प्रगाढ़ सम्बन्ध ? काम हो चुका था I
सुलतान जानता था उसका काम हो चुका था फिर भी वह खुश नहीं था वह जानता था ये दोनों अपने अपने धर्मों के वही नेता थे पिछली बार जिनके एक भाषण से दंगे भड़क उठे थे और सैकङो लोगों की जानें गयी थी इन दोनों में इतने प्रगाढ़ सम्बन्ध , वह सोच भी नहीं सकता था हालांकि वह जानता था दूर के रिश्ते में इन दोनों की वैवाहिक सम्बन्ध होने से रिश्तेदारी भी थी I
वह सोच रहा था जिस सियासत से वो आज तक नफरत करता था कितना भाईचारा है इन लोगों में आपस में और यहां तक की रिश्तेदारी भी बस दुनिया की नज़र में वे विरोधी हैं और हम आम आदमी इनके एक इशारे पर कत्लेआम को तैयार हो जाते हैं आज काम हो जानें पर भी वह भारी मन से वापस लौटा उसका मन अपने स्वयं के प्रति आत्मग्लानि से भरा हुआ था I

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