- 179 Posts
- 948 Comments
अक्सर यह देखा जाता है की बड़े त्योहारों में मंदिरों में होने वाली भीड़ की वजह से कई मौतें हो जाया करती हैं आखिर इसका क्या कारन है क्यूँ जनता इतनी बड़ी संख्या में दर्शन के नाम पर काल के गाल में समां जाती है यह जानते हुए की ऐसे स्थानों में इस प्रकार की घटनाएँ होती ही रहती हैं
भगवन के दर्शन अन्य किसी दिन भी किये जा सकते हैं यह आस्था नहीं अंध भक्ति है की किसी विशेष दिन गंगा में नहाने से पुण्य प्राप्त होगा क्या अन्य दिन गंगा के पानी में बदलाव आ जायेगा जब हिन्दू धर्म के अनुसार इश्वर हर जगह उपस्थित है तो उसके दर्शन घर में ही क्यूँ नहीं या किसी और दिन क्यूँ नहीं जनता को यह समझना होगा और दर्शन के वक़्त स्वयं भी आत्मनियंत्रित होना होगा हजारों की संख्यां में एक की नासमझी भी खतरनाक साबित हो सकती है
जहाँ तक प्रश्न मंदिर व्यवस्था का है जब मंदिर व्यस्थापकों को यह पहले से मालूम होता है की अनुमानतः कितनी संख्यां में लोग शामिल होंगे तो उन्हें पहले ही स्वयंसेवकों का इंतजाम रखना चाहिए तथा प्रशाशन से भी जरूरी मदद लेनी चाहिए क्या मंदिर प्रशाशन चादावे से प्राप्त धन से मौज करने के लिए ही है यदि इस धन का दस प्रतिशत भी व्यवस्था पर खर्च किया जाय तो ऐसी दुर्घत्नायों की पुनरावृत्ति न हो
ऐसे मौकों पर पुलिसे को भी उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है दरअसल हमारी पुलिस भीड़ को नियंत्रित तो कर सकती है परन्तु उन्हें ऐसे मौकों में भीड़ मैनेजमेंट का न तो कोई अनुभव होता है और न ही कोई प्रशिक्षण अल्लाहाबाद कुम्भ का ही उदहारण ले वहां सबसे पहले आस्था से भरी जनता को नियंत्रित करने का तथा मैनेज करने प्रशिक्षण दिया गया आस्था से भरी भीड़ लाथिचार्गे जैसी घटनाओं से और भी अनियंत्रित और उग्र हो सकती है
वैष्णो देवी का ही उदहारण ले वहां कभी कोई ऐसी घटना नहीं घटती वहां मंदिर में प्रबंधन की उचित इंतजाम हैं जरुरत से ज्यादा भीड़ होने पर उन्हें पहले से ही रोक दिया जाता है मंदिर केवल आस्था के तथा चडावे में आये धन की बंदरबांट के लिए नहीं हैं जितनी मंदिर में उचित इंतजाम होंगे उतना ही जनता में आस्था का भी इजाफा होगा आज जरुरत है मंदिर के प्रबंधन को उचित पूर्वानुमान के आधार पर उचित व्यस्था करने की जितना पैसा बाद में मुवावजे के रूप में दिया जाता है उसका दस फीसदी भी इन्तेजामत पर खर्च हो तो यह घटनाएँ ही न हो
Read Comments