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इससे तो हर घर मेँ एक बलात्कारी होगा [कविता]

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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समाज मेँ संस्कार के भी कुछ मायने होते हैँ

सुना था साहित्य समाज के आईने होते हैँ

आज इस आईने मेँ सब धुँधला नजर आता है

समाज एक बाजार हर एक खरीदार नजर आता है

इस अक्स मेँ अपने भी कुछ दोष रहे हैँ

नयी नस्ल को महज अश्लीलता परोस रहे हैँ

इस नयी पीड़ी को हमने भी क्या दिया

माँ बाप के प्यार की जगह

इन्टरनेट थमा दिया

ये कच्ची उम्र की पीढी क्या जान पायेगी

जो देखेगी उसी को तो अपनायेगी

इसे देखकर वह मासूम भला क्या पायेगा

उसे तो हर माँ बहन मेँ महज जिस्म नजर आयेगा

इस तरक्की मेँ कैसे हर बालक संस्कारी होगा

इससे तो हर घर मेँ एक बलात्कारी होगा

हम सयानोँ को ही इस सोच को बदलना होगा

तरक्की महज वस्त्र त्याग नहीँ ये समझना होगा

खुद इस समाज को संस्कारोँ से सजाना होगा

अँधेरे को न कोस वरन दीप जलाना होगा

दीपक पाण्डे J N V नैनीताल

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