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कुमाऊं की पहाडिओं पर होने वाली होली की शुरुआत बसंत पंचमी से ही होजाती है इस दिन होली के दिन धारण करने वाले वस्त्रों में रंग डाला जाता है तथा इसी दिन से विभिन्न घरों में होली की बैठक होने लगती हैं इनमे अधिकांश महिलाओं की बैठक होती हैं जिनमे गणेश जी की वंदना से आरम्भ करके राधा कृष्णा और शिव पारवती से सम्बंधित गीत गए जाते हैं पहाड़ों में यह सिलसिला पूरे एक माह तक चलता है चूंकि पहाड़ों में आवाज प्रतिध्वनि द्वारा गूंजती है तो फाल्गुन के इस पूरे महीने कुमाऊं इन्ही होली के गीतों से गुंजायमान रहता है
बिरज में होली कैसे खेलूंगी में संवारिए के संग
अबीर उड़ता गुलाल उड़ता उड़ते सातों रंग सखीरी
उड़ते सातों रंग
कान्हा जी की बांसुरी बाजे राधा जी के संग
बिराज में …………………………………………
इसी प्रकार शिवजी से सम्बंधित होली
होली खेलत पशुपतिनाथ
नगर नेपाला में
वृंदावन में कान्हा होली खेलें
राधा जी के साथ
शिव पारवती के साथ
नगर नेपाला में
इसी प्रकार कृष्णा के भजन से पूरा अल्मोरा नैनीताल गूंजता है फाल्गुन के पूरे महीने ये स्त्रीयां गुलाल से सराबोर हर गली मौहल्ले में नजर आती हैं होली में देवर भाभी का टीका भी बड़ा ख़ास होता है इस दिन देवर भाभी के साथ होली खेल उनके वस्त्रों को रंग से सराबोर करता है और दो दिन बाद भाभी को नयी साडी प्रदान करता है
इनका परंपरा के साथ साथ बड़ा व्यवहारिक महत्व भी है विभिन्न स्त्रीयां जिनका टैलेंट बहार न निकलने पर छिपा रहता है यहाँ ढोलकी की थाप पर नृत्य करके वह अपना टैलेंट प्रस्तुत करती है और मजे की बात यह है की अधिकतर कन्याओं का विवाह इसी मंडली में नवयौवना कन्याओं को देखकर बुजुर्ग महिलाओं द्वारा तय कर दिया जाता है और त्यौहार के बहाने एक सामाजिक सामंजस्य भी बना रहता है
दिन में महिलाओं की होली होती है तो रात में पुरुषों की कड़ी होली का भी अलग ही आनंद होता है ये सब कृष्णा और राधा के भजन शाश्त्रीय संगीत के रूप में बंदगी के अंदाज में तबला सितार हारमोनियम के साथ गाते हैं यदि सामान बंध जाता है तो यह होली पूरी रात चलती है समय समय पर इन होली के मतवालों को आलू के गुटके तथा चटनी चाय के साथ पेश किये जाते हैं
आज की आधुनिकता ने इस होली में नया रंग भर दिया है जिस नयी पीड़ी को यह गीत नहीं आते वो अपने म्यूजिक सिस्टम में यह होली रिकॉर्ड करके बजाकर आनंद लेता है अब तो यह गीत विभिन्न इंटरनेट माध्यमों से भी डाउनलोड किये जा सकते हैं हालाँकि समय के साथ कुछ कुरीतियां भी आ गया हैं जैसे अब मदिरा का सेवन भी होने लगा है परन्तु यह बहुत ही कम है आज भी पहाड़ का यह समाज अपनी होली की सांस्कृतिक धरोहर को सम्भाले हुए है
होली के इस रंगारंग कार्यक्रम में महिलाएं स्वांग रचती हैं स्वांग का अर्थ है वह आने मनपसंद किरदार का रूप धर कर अभिनय करती हैं कोई कृष्णा राधा बनकर भी होली का सजीव चित्रण करती हैं इससे मिलाओं में बसी अभिनय की प्रतिभा भी उजागर होती है यदि कोई महाशय इसमें ज्यादा जानकारी रखता हो तो कमेंट के माध्यम से लिख सकता है मैंने तो एक छोटा सा प्रयास भर किया है
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