CHINTAN JAROORI HAI
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बेआबरू होकर निकाला गया हूँ आज, जिसके मैं दर से
सोचता हूँ वो जमाने में कितना ,सताया हुआ होगा
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सुना है आजकल वो करने लगा है, धर्म की कुछ बातें
खंज़र उसका भी किसी के खूं से ,नहाया हुआ होगा
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गली मैं जाते ही दौड़ा देता है , ले करके वो पत्थर
दुनिया में वो किस कदर चोट ,खाया हुआ होगा
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एक मुद्दत से इस आँगन में, न खिला है कोई फूल
किसी कली को कोख में यहां ,दफनाया हुआ होगा
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आज भी ज़िंदा है वो भंवरा कई, कलियों को मसल
बागबान उसकी पैरवी को कोई, आया हुआ होगा
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शागिर्द आज काट रहा है मेरा ही ,शीश सरे आम
ये हुनर उसे मैंने ही कभी, सिखलाया हुआ होगा
दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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