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परिवार की इकाई का वो ही है रहनुमां
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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माँ है गर वात्सल्य तो चट्टान है पिता
माँ है आशियाँ तो निगेहबान है पिता
माँ है एक तपस्या तो वरदान है पिता
माँ है अगर जमीन पिता है आसमाँ
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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साया है पिता का तो किसी का न भय है
जीवन के इस संगीत की अलग ही लय है
हर लम्हा हर एक दिन आनंद से मय है
हँसता हंसाता चलता है जीवन का कारवां
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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पिता जो है साथ सभी सपने सलोने हैं
मेले में मौजूद सारे ही अपने खिलोने हैं
दुःख और तकलीफ सब लगते बौने हैं
मुसीबत का हर बड़ के करता है सामना
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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जन्म देती है माँ तो पिता है संभालता
खुद का पेट काट के बच्चों को पालता
जीवन की दुश्वारियों से वो ही निकालता
हर पल सुनहरे कल की करता है कामना
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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खुद बन के घोडा पीठ पे बैठाता है पिता
संतान की खातिर तन जलाता है पिता
जीवन के मूल्यों का पाठ पढाता है पिता
बिठा के काँधे पर दुनिया दिखाता है पिता
एक एक ईंट पत्थर जोड़ बनाता है घरोंदा
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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बच्चों के सुनहरे भविष्य का आगाज़ पिता है
सपनों के उनके पंखों की परवाज़ पिता है
परिवार है एक संगीत उसका साज़ पिता है
समय की रेत पर बनाता चलता है निशाँ
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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अपने सुख की खातिर जी पाता ही कहाँ है
अपने जख्मों को स्वयं सी पाता ही कहाँ है
जज़्बातों को अपने दिखा पता ही कहाँ है
ये वो रिश्ता है जिसमे न हैं कोई खामियां
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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दुनिया में अनमोल है खुदा की ये नैमत
संसार में बहुमूल्य है इन्सां की ये दौलत
आता समझ दुनिया से जब होता है रुखसत
तब बनता है इस रिश्ते से यादों का आशियाँ
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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ज़हन में इसी बात का एहसास किया है
इस रिश्ते को समझने का कयास किया है
सभी के आत्ममंथन का प्रयास किया है
लिख देती है लेखनी न कहता हूँ ख्वामखां
घर है अगर चमन तो पिता है बागबां
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दीपक पाण्डेय
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
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