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मतदाता हूँ मैं मुझपे न
किसी का जोर है
मेरे मत की मेरे हाथ
में ही बागडोर है
मेरा वोट पाने का वो
पहला हकदार है
वंशवाद की परंपरा का
जो तलबगार है
गरीब किसान के लिए जिसकी
आँखों में न पानी है
अपराध के क्षेत्र में जिसकी
अपनी पृष्ठभूमि है
धर्म और जाती के नाम
पर जो दंगे कराये
क्षेत्रवाद की परंपरा को भी
आगे बढ़ाये
महज़ भ्रष्टाचार ही
जिसका फ़र्ज़ हो
स्विस बैंक में भी जिसका
नाम दर्ज हो
समाज में जो बुराई की
महामारी को फैलाये
सत्ता में आते ही मदिरा
सस्ती दिलाये
इसमें से कुछ नहीं तो बस
एक बीमारी हो
कम से कम वो एक
व्यभिचारी हो
ये पड़ के पाठक क्यूँ हैं
इतना क्रोध कर रहे
चुनाव के विषय में
इतना शोध कर रहे
लिखा है जो आज इसमें
कुछ भी न नया है
पिछले कुछ दशकों से बस
यही तो हुआ है
कर लो अब ये प्रण
न ये सब दोहराएंगे
मतदाता हैं बस मतदाता
का ही फ़र्ज़ निभाएंगे
अब न हिन्दू न कोई सिख
न ही मुसलमान हो
मतदाता हो बस न किसी के
वोटों की दूकान हो
मतदान न कहना इसे
ये महापर्व है
विश्व से विशाल लोकतंत्र पर
जनता को गर्व है
समाज के सुधार का
ये अनोखा ही रण है
सोती जनता हेतु
पुनर्जागरण है
राजनीती के वंशवाद को
अब दूर भगाना है
पंडित और मुल्ला को जो
बना के गोटियां
धर्म के तवे पे
सेंकते हैं रोटियां
उन सियासतदारों को
अब धुल चटाना है
किसी भी क्षेत्र का हो
या कोई बाहुबली हो
अपराधी न चुनेंगे
कोई भी दली हो
काले धन पर अदालत
न्याय करेगी
स्विस बैंक के
खातेदारों से अब
जेल भरेगी
किसी भी व्यसन के
अब झांसे में न आयेंगे
समाज को विकास की
राह दिखाएंगे
दुर्जनों को दूर करके
ये कमाल दिखाएंगे
दुनिया में लोकतंत्र की
मिसाल बनाएंगे
दीपक पाण्डेय नैनीताल
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