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माना कि इस धरा में वृक्षों की कमी है
हर ओर कंक्रीट से पटी ये जमीं है
प्रदुषण से हर एक की साँस थमी है
वातावरण में भी शुद्ध वायु की कमी है
परिस्थिति से यूं ही न हम हार जायेंगे
छत में ही सही एक नया चमन बसाएंगे
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चारदीवारी में ही गमलों की कतार हो
खिलते हुए फूलों की उसमे बहार हो
पुष्प पर मंडराते भंवरों का खेल हो
दीवारों पर नृत्य करती नवीन बेल हो
हर एक घर में फिर से तुलसी सजायेंगे
छत में ही सही एक नया चमन बसाएंगे
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लैंप पोस्ट पर ही कुछ डब्बे सजे हों
पक्षियों के जिनमें नए घरोंदे बने हों
बर्फ के मैदान में भी पॉली हाउस बने हों
भीतर उनके सब्जियों के बागान सजे हों
ड्रिप इरिगेशन से मरू में खेत लहलहाएंगे
छत में ही सही एक नया चमन बसाएंगे
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हर किसी के घर में होगा नया सवेरा
विकल्प सौर ऊर्जा का मिटाएगा अँधेरा
इस जहाँ से पॉलिथीन की हस्ती मिटेगी
हर घर में जैविक कूड़े से कम्पोस्ट बनेगी
सड़क के दोनों ओर नए वृक्ष लगाएंगे
छत में ही सही एक नया चमन बसाएंगे
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जल नदी का बहेगा अपने ही वेग से
रोके नहीं रुकेगा बांधों के उद्वेग से
कारखानों के लिए नया कानून बनेगा
जो करेगा जल दूषित वही शोधन भी करेगा
अब और नदियों को न प्रदूषित बनाएंगे
छत में ही सही एक नया चमन बसाएंगे
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अब किसी घर से व्यर्थ पानी न बहेगा
एक सोकपिट टैंक हर घर में बनेगा
सारा जल उसी से जमीं में रिसेगा
भू जल का भी कुछ स्तर बढ़ेगा
सबको जल की खेती का पाठ पढ़ाएंगे
छत में ही सही एक नया चमन बसाएंगे
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दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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