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जिन दरख्तोँ की छाँव मेँ (कविता)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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जिन दरख्तोँ की छाँव मेँ

खेलते थे गाँव मेँ

काँटे लगे जो पाँव मेँ

सहलाये जख्म

उसी की पनाह मेँ

उन्हीँ दरख्तोँ को अपने हाथ से

गिराना पड गया

अपने को अपने आप से

हराना पड गया

नये जमाने की दौड मेँ

तरक्की की इस होड मेँ

जीवन की जोड तोड मेँ

यही था मुनासिब

मन को इसी बात से

बहलाना पड गया

अपने को अपने आप से

हराना पड गया

गोद मेँ जिसके बडे

कंधोँ मेँ जिसके चडे

खिलोनोँ को जिद पे अडे

अपने ही हाथ अग्नि मेँ

जलाना पड गया

अपने को अपने आप से

हराना पड गया

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