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नक्सलवाद [कविता]

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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नक्सलवाद

बरसोँ से इन जंगलोँ मेँ पल रहे थे हम

मेहनत की आग मेँ हर पल जल रहे थे हम

अपने भविष्य को स्वयं सजा रहे थे हम

जिन हाथोँ से अन्न उपजा रहे थे हम

उन्हीँ हाथोँ मेँ कैसे मौत के हथियार हो गये

मासूमोँ की नस्ल के कत्ल के गुनाहगार हो गये

इन जंगलोँ मेँ अपनी ही पनाह मेँ थे हम

धीरे ही सही तरक्की की राह मेँ थे हम

मदद को अपने कोई न सलाहकार था

दीखता न तब कोई भी मानवाधिकार था

जबसे कर्म अपनी लाशोँ के व्यापार हो गये

मासूमोँ की नस्ल के कत्ल के गुनाहगार हो गये

अब और कितनी मासूम मौतो के गवाह बनेँगे

वतन के सिपाही के कत्ल के पर्याय बनेँगे

कोसेँगे न अँधेरे को स्वयं ही दीप जलायेँगे

अपने आप को राजनीती का न मोहरा बनायेँगे

कैसे हम मुख्य धारा से दरकिनार हो गये

मासूमोँ की नस्ल के कत्ल के गुनाहगार हो गये

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