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नक्सलियों से लड़ते जांबाज़ का खत पिता के नाम (कविता)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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माफ़ करना ए मेरे पिता
अबकी घर न आ पाऊंगा
बेटा होने का फ़र्ज़
भी नहीं निभा पाऊंगा
गोद में तुम्हारे बड़ा
कंधो पर तुम्हारे चढ़ा
उन्ही कन्धों पर चढ़ के
आज इस दुनिया से जाऊँगा
……………………………….
माफ़ करना मेरी माँ
अबकी न आ सका
बेटा ये तुम्हारे वास्ते
दवाई न ला सका
संघर्ष जिनका देख कर
तुम्हारी याद आयी थी
उन महिलाओं में तुम्हारी
ही तो छवि पाई थी
अफ़सोस उन्होंने ही
हम पर गोलियां चलाई थी
……………………………….
दुर्दशा जिन बच्चों की देख
हमारी आँखें भर आयी थी
अफ़सोस उन्ही बच्चों ने
बारूदी सुरंगे बिछाई थी
जिनसे लड़नी थी लड़ाई
वो सामने भी न आये थे
उन नारियों के आँचल में छिपे
नरपिशाचाों के साये थे
………………………………
हमने भी न मानी हार
पलट के किया वार
मरते मरते सारी गोलियां
उन पर चलाई थी
………………………..
जानते हैं सभ्य समाज
ये न समझ पायेगा
उनके क़त्ल का इल्जाम
हम पर ही लगाएगा
फिर सामने मानवाधिकार
का अवतार आएगा
वहशी हमें उन नरपिशाचों
को मासूम बतलायेगा
ये बतला के खुद के बुद्धिजीवी
होने का ढोंग रचायेगा

दीपक पाण्डेय
नैनीताल

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