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नारी तू नारायणी ( कविता )

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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नारी तू नारायणी क्यूँ इस जहाँ से डर रही
तू ही जीवनदायिनी क्यूँ मरने से पहले मर रही

आज सियासत मेँ सुरसा ताडका ने ही वास किया
खूनी बलात्कारी को हमेशा उन्होने ही माफ किया

हर बार यूँ ही कत्ल होगी यूँ ही सहती जायेगी
दुर्गा सती काली चंडी को शर्म तुझ पर आयेगी

जब तेरा ही जिस्म तेरे कत्ल का कारण बने
प्रचँड रुप धर आक्रमण करना तेरा ये ही प्रण बने

तुझ से जीत जाने का यम ने भी न साहस किया
शिव भी चरण के नीचे थे जब तूने अट्टाहस किया

उठती थी तुझ पर निगाहेँ आज वो झुकने लगे
तोड दे उस हाथ को जो तेरी ओर बढने लगे

न किसी पर कर भरोसा खुद ही चंडी रूप धर
हाथ जो जिस्म पर उठे काट दे भूमी पे धर

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