CHINTAN JAROORI HAI
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उम्र भर मुफलिसी मेँ जो रोता ही रहा ।
फटेहाल वो गरीब ए हिन्दोस्तान है जनाब ॥
चन्द बोतलोँ की खातिर बिकता है वही ।
इस देश का मतदाता है ये मतदान है जनाब ॥
ईमानदारी कहीँ इक कोने मेँ बैठी है छिपी ।
बेईमानी के हाथोँ उसका गिरेबान है जनाब ॥
सूरज के अस्त होते ही डगमगाने लगे हैँ पग ।
मयखाना है या देवभूमी का स्थान है जनाब ॥
पँडित और मुल्ला धर्म के ठेकेदार हैँ ।
अब न कोई कबीर न रसखान है जनाब ॥
खिलने से पहले कलियोँ को मसलने लगे ।
कुमाताओँ से भरा समाज ये महान है जनाब ॥
कातिल और मसीहा मेँ कोई फरक नहीँ ।
अबु सलेम भी देश का मेहमान है जनाब ॥
रिश्वत है जरुरी कोई जिये या मरे ।
भ्रष्टाचार मेँ अव्वल ये हिन्दोस्तान है जनाब ॥
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