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लोकतंत्र की हत्या

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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लोकतंत्र  का अर्थ है जनता के लिए ,जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार, परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में क्या यह सफल होता नज़र आ रहा है ? सामान्यतः जनता द्वारा चुना गया  सबसे बड़ा दल सदन में अपना बहुमत पेश करती है और जनता के जनादेश का मान रखते हुए वह दल अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाता है  मगर आजकल जनता के जनादेश के खिलाफ जाकर ,जनादेश की अनदेखी करते हुए  अन्य सभी दल ( जिन्हें चुनाव में जनता ने नकार कर दरकिनार कर दिया ) मिलकर सरकार बनाने लगे हैं।
हास्यास्पद बात तो यह है जनता ने जिस दल को पुर्णतः नकार कर न्यूनतम जनादेश दिया होता है राज्य का मुख्यमंत्री उसी पार्टी का बनाया जाता है। इसे आप इस प्रकार समझ सकते हैं कि यदि कक्षा में सभी गैर अनुशाशित छात्र मिलकर अपना कक्षा नायक चुन लें ताकि वह कक्षा में अपनी पुर्णतः मनमानी कर सकें। अब बात यह समझने की है कि इस पूरे प्रकरण में विभिन्न दलों की खरीद फरोख्त तो लाजमी ही है और जिस प्रदेश की सरकार की नींव ही खरीद फरोख्त पर टिकी हो तो तो वह सरकार उस धन की भरपाई भ्रष्टाचार से ही करेगी I जब जनता द्वारा दिए गए जनादेश से सरकार ही नहीं बन रही इसे सीधे सरल शब्दों में लोकतंत्र की मौत ही कहा जा सकता है।

 

 

चूँकि हमारे संविधान के विषय में कहा गया है कि यह सभ्य लोगों द्वारा सभ्य लोगों के लिये लिखा गया है परन्तु जब दल ही सभ्य नहीं रहे तो संविधान में कुछ आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक हैं। जैसे कि अन्य देशों की तरह केवल दो ही दल की व्यवस्था हो जिससे चुनाव के बाद मिलीजुली सरकार बनाने और व्यर्थ की खरीद फरोख्त का नाटक ख़त्म होगा। चुनाव से पहले हुए गठबंधन को अगले पांच साल तक इस गठबंधन को तोड़ने की या किसी अन्य दल से गठबंधन करने की अनुमती न हो और राज्यपाल या राष्ट्रपति यह सुनिश्चित करे कि किसी भी हाल में जनता के जनादेश के तहत सबसे बड़े दल को ही सरकार बनाने का मौका मिले और लोकतंत्र की गरिमा बनी रहे, अगर यह सब सुधार न भी लाये गए तो जनता को स्वयं ही जागरूक होकर अपने चहेते दल को इतने भरी बहुमत तथा इतने ज्यादा स्थानों पर जनादेश देना होगा कि गठबंधन की सर्कार की यह स्थिती ही न पैदा हो।

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