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हर बार की तरह इस साल भी चित्र कुमार अपनी माँ की पुण्यतिथि पर अपने पुत्र के साथ अस्पताल में रक्तदान के लिये गये थे ।अस्पताल के बाहर मातम परसा था एक अधेड सज्जन के एक्सीडेंट का केस था साथ में पत्नी तथा मरियल जवान बिटिया थी।चूँकि खून बहुत बह चुका था अतः ताजा 3 यूनिट खून की जरूरत थी ।चित्र कुमार ने तुरन्त अपना व पुत्र का खून मिलाकर रक्तदान की पेशकश की । रक्त मिलने पर पीड़ित की जान बचा ली गयी अब वह माँ,पुत्री चित्र कुमार के कदमों में थी और नर्स रो रही थी ।कारण पूछने पर बोली ऐसा तो फिल्म में देखा करती थी कि एक हिन्दू खून देकर एक मुसलमान की जान बचा रहा है आज पहली बार साक्षात अनुभव कर रही हूँ ये मेरी आँखों में खुशी के आँसू हैं ।यथार्थ में आप आम इन्सान ही आम जिंदगी के नायक हो ।इस पर चित्र कुमार बोले हिन्दू,मुसलमानया नायक तो मैं नहीं जानता पर इतना जरूर कहूँगा कि आज अपनी माँ की पुण्यतिथि में अपनी रगों में बहने वाले अपनी माँ के रक्त से मैं एक पिता की प्राणों की रक्षा करने में सफल रहा
दीपक पाँडे
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
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