Menu
blogid : 14778 postid : 6

समाज और संस्कार [कविता]

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
  • 179 Posts
  • 948 Comments

समाज मेँ संस्कार के भी कुछ मायने होते हैँ

सुना था साहित्य समाज के आईने होते हैँ

आज इस आईने मेँ सब धुँधला नजर आता है

समाज एक बाजार हर एक खरीदार नजर आता है

इस अक्स मेँ अपने भी कुछ दोष रहे हैँ

नयी नस्ल को महज अश्लीलता परोस रहे हैँ

ये कच्ची उम्र की पीढी क्या जान पायेगी

जो देखेगी उसी को तो अपनायेगी

इसे देखकर वह मासूम भला क्या पायेगा

उसे तो हर माँ बहन मेँ महज जिस्म नजर आयेगा

इस तरक्की मेँ कैसे हर बालक संस्कारी होगा

इससे तो हर घर मेँ एक बलात्कारी होगा

हम सयानोँ को ही इस सोच को बदलना होगा

तरक्की महज वस्त्र त्याग नहीँ ये समझना होगा

खुद इस समाज को संस्कारोँ से सजाना होगा

अँधेरे को न कोस वरन दीप जलाना होगा

दीपक पाण्डे J N V नैनीताल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply