असमंजस
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एक उम्र बीत गयी पहचान बनाते बनाते
आज लोगो ने पहचाना तो हम खुद को भूल गए.
दिल पे जाने क्यों दस्तक देता है मेरा बचपन
कुछ देर को दरवाज़ा खोल तो आंसू निकल गए.
जब तक चलता रहा अंगारों पर,चेहरे पे शिकन न थी
आज दो पल फुर्सत के क्या मिले,पुराने जख्म उभर गए.
दुनिया की रफ़्तार से कदम मिलाते हुए निकल गए बहुत आगे
आज लगा की मंजिल करीब है,मगर अपने तो भीड़ में ही बिछड़ गए…
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