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प्रस्तुत पंक्तिया मुझे एक दोस्त ने भेजी थी . मुझे पसंद आने के बाद मैंने उसमे कुछ और जोड़ कर आपके सामने पेश कर रहा हूँ…
सोचता हूँ के उसे नींद भी आती होगी ,
या मेरी तरह फ़क़त अश्क बहाती होगी ?
वो मेरी शक्ल मेरा नाम भुलाने वाली ,
अपनी तस्वीर से क्या आँख मिलाती होगी?
इस ज़मीन पर भी है सैलाब मेरे अश्कों से,
मेरे मातम की सदा अर्श हिलाती होगी ?
शाम होते ही वो चोखट पे जला के शमां,
अपनी पलकों पे कई खाब सुलाती होगी ?
उस ने सिलवा भी लिए होंगे स्याह लिबास,
अब राम जाने किस तरह दीवाली मानती होगी?
होती होगी मेरे बोसे की तलब मे पागल ,
जब भी जुल्फों मे कोई फूल सजाती होगी ?
मेरे तारीक़ ज़मानों से निकालने वाली ,
रौशनी तुझ को मेरी याद दिलाती होगी?
दिल की मासूम रगें खुद ही सुलगाती होंगी ,
ज्योंही तस्वीर का कोना वो जलाती होगी ?
रूप दे कर मुझे उस में किसी शाहज़ादे का,
अपने बच्चों को कहानी वो सुनाती होगी?
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