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मोदी, अमिताभ बच्चन और शेष दुनिया

सीधा, सरल जो मन मेरे घटा
सीधा, सरल जो मन मेरे घटा
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यदि मोदी धर्म निरपेछ लगते हैं अमिताभ को, तो क्या हुआ. इस देश में धर्म निरपेछ और सांप्रदायिक कौन है, इसकी परिभाषा विगत कुछ वर्षों में इस तरह से गढ़ी गयी है कि सर्वाधिक सहनशील सनातन धर्म के पछ में कही गयी कोई भी बात, भले ही उस बात से किसी अन्य पंथ, सम्प्रदाय का कोई लेना देना हो या ना हो, सांप्रदायिक है और उसका विरोध सेक्युलरिज्म. २३ अक्टूबर को अपने ब्लॉग में राजीव शुक्ल बिलकुल सही लिखते हैं कि अमिताभ के मोदी पर दिए गए सीधे सादे बयान के राजनीतिक निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं और बेमतलब इसे तूल दिया जा रहा है. वह सही कहते हैं कि विषम परिस्थितियों में गुजरात का कांटों भरा तख्त मोदी ने संभाला था और उन्होंने गुजरात के इतिहास में विकास के नए आयाम स्थापित किए. आज गुजरात प्रान्त देश का सर्वाधिक विकसित प्रान्त बनने की ओर तीव्रता से अग्रसर है, जिसका फायदा प्रदेश की पूरी जनता को मिलेगा. किस प्रान्त की जनता नहीं चाहेगी कि उसे ऐसा विकासोन्मुख मुख्यमंत्री मिले. वह फिर लिखते हैं कि तीसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा के किसी स्टार प्रचारक को बुलाए बिना सत्ता का मार्ग उन्होंने अपने लिए प्रशस्त किया, अगर मोदी की छवि पर इतने बदनुमा दाग होते तो उनका कांग्रेस के गढ़ में जीतना संभव नहीं होता. यह सच है कि दंगे किसी भी प्रान्त के शरीर पर एक घाव के समान होता है, परन्तु क्या इस घाव को कुरेद कुरेद कर नासूर बनाना उचित होगा. लेकिन ऐसा किये बिना राजनीतिक रोटियां भी तो नहीं सिक सकतीं. क्या दंगों का बार-बार स्मरण लोगों में नफरत की अभिव्रधि नहीं करता और एक मायने में साम्प्रदायिकता की पछ्धारिता का बोध नहीं कराता. यहाँ पर राजीव जी द्वारा अपने ब्लॉग “सत्य कहने का दुस्साहस किया बच्चन ने”, में उल्लिखित राहत इन्दौरी के शेर को फिर से पेश करना चाहूंगा — ‘यारों हमी बोला करें दिल्ली से अमन की बोली, कभी तुम लोग भी तो लाहौर से बोलो’. क्या ऐसा कथन साहस होगा या फिर दुसाहस ? सांप्रदायिक होगा या धर्म निरपेछ ? इसका उत्तर हमें खोजना होगा और वो भी बहुत ही जल्दी नहीं तो यह छद्म सेकुलरिस्म बनाम नॉन-सेकुलरिस्म के आतंकवाद से हमारी रछा कोई नहीं कर सकेगा. जागो भारत के प्रबुद्ध जन मानस, समझो क्यों हर बात को तूल दिया जाता है और क्यों कोई मुद्दा वक्त के कब्रस्तान में दफ़न कर दिया जाता है. जागो, समझो और सही बात को सही और गलत को गलत कहने वालों का साथ देने का साहस पैदा करो. हाँ, परन्तु सब कुछ शांति पूर्ण तरीके से धीरे धीरे विकसित करो और अपने देश को विकास की उस ऊंचाई तक ले चलो जिसकी चाहत हर भारतवासी के मन में होती है. एक विकसित और सही मायने में धर्म निरपेछ राष्ट्र ही स्थाई होता है. आज सही मायने में हमें धर्म निरपेछ होने की जरुरत हैं न कि गुमराह होकर छद्म सेकुलरिस्म का समर्थन करने की. जरुरत है इस जज्बे को पैदा करने की कि “हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं.” जरुरत है इस अभियान की, अपने देश को गौरवशाली बनाने के लिए.

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