डॉक्टरों का एक और कमाल का कृत्य उजागर हुआ है. अपनी पोस्ट “गंदा है क्योंकि अब धंधा है” में मैंने चिकित्सा व्यवसाय में दिनों दिन व्याप्त होती विद्रूपता पर रेखाचित्र खींचा था. डॉक्टरों का एक और कारनामा अभी अभी प्रकाश में आया है. अपराध पर से पर्दा हटाने के लिए, अपराध और अपराधी का राज खोलनें के लिए, किसी की मौत क्यों हुयी ये जानना आवश्यक होता है. और इसीलिये लाशों का पोस्ट-मार्टम होता है ताकि सत्य पर से नकाब हट सके. राज खुल सके उस अपराधी का जिसने एक जान ले ली, और इसी प्रयोजन से फोरेंसिक डिपार्टमेंट का गठन हुआ. पुलिस और गुप्तचर विभाग की भी अपराध से पर्दा हटाने के लिए इस पर बहुत निर्भरता रहती है. परन्तु स्वार्थ सदैव ही सत्प्रयोजन की राह में रोड़ा रहा है. चंद सिक्कों की खनक के आगे आत्मा की आवाज दबते देर नहीं लगती. ऐसा ही कुछ हुआ मुरादाबाद के पोस्ट-मार्टम हॉउस में जहां एक डॉक्टर ने बिना पोस्ट-मार्टम किये रिपोर्ट जारी कर दी. लावारिस लाशों के बिना पोस्ट-मार्टम किये कहीं और इस्तेमाल किये जाने की शिकायत पर एक स्पेशल आप्रेसन के तहत छापा मार कर उन शवों को बरामद कर लिया वो भी बिना पोस्ट-मार्टम के, जबकि कागजों पर उनकी पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट दर्ज थी. लिहाजा एक डॉक्टर, एक फार्मेसिस्ट के अलावा एक अन्य कर्मचारी को दोषी मान गिरफ्तार कर लिया गया. सवाल यह उठता है कि जब एक ऐसी संवेदनशील जगह पर भी डॉक्टर के दिमाग में बिजनेस ही चल रहा हो तो अगर उसने पोस्ट-मार्टम किया भी होता तो इसकी क्या गारंटी हैं कि बिना किसी आर्थिक फायदे के उस डॉक्टर ने कोई भी रिपोर्ट लगाई हो. ऐसे कफ़न-खसोट डॉक्टर से क्या चांडाल का पेशा ज्यादा पवित्र नहीं है. चंडाल तो कम से कम वही काम करता है जिसकी उससे अपेच्छा की जाती है, जिसका वो मूल्य लेता है. परन्तु इस डॉक्टर ने तो अपने व्यवसाय को कलंकित करने के साथ लोगों की आस्था को भी ठेस पहुंचाई. एक बार फिर डॉक्टर और लाशों पर कारोबार के बीच सम्बन्ध स्थापित हो गया. मानवता को शर्मशार करने वाले इस कृत्य के पीछे फिर डॉक्टर के अन्दर मौजूद घृणित स्वार्थ का जानवर ही परिलक्षित होता है. स्वार्थ का ये जानवर हर बार एक डॉक्टर को हराकर उसे घृणित कीड़े के समतुल्य कर देता है. ये सब कृत्य करते ना डॉक्टर के हाथ कापते हैं और न ही उसका ह्रदय विचलित होता है. उत्तर प्रदेश के ठाकुरद्वारा में एक घटना में पोस्ट-मार्टम की रिपोर्ट में सर से गोली ही गायब कर दी जाती है और हो हल्ला होने पर नयी पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट जारी की जाती है जिसमें पता चलता है कि ह्त्या के दौरान सर में गोली लगी थी. इन डॉक्टरों की कारगुजारियों की वजह से लावारिश लाशों को आखिर तक अपने लोगों का नाम पता नहीं चल पाता है और यदि सम्माननीय अखवार दैनिक जागरण के मुरादाबाद संस्करण के १९ नवम्बर, २०१० के पृष्ठ संख्या ३ पर गौर करें तो आप पायेंगे कि इन लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार के पैसे भी बचा लिए जाते हैं उलटे तांत्रिक क्रिया और अन्य प्रयोजनार्थ इन लाशों को बेचकर पैसे खड़े कर लिए जाते हैं. इन लावारिश लाशों की पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट से इनके वारिशों, रिश्तेदारों का पता भी चल जाता है. कभी कभी इन लावारिश लाशों के वारिश सामने आकर तफ्तीश का अंदाज ही बदल देतें हैं. यहाँ पर भी इन लाशों की कीमत को कैश करने का मौका उपलब्ध रहता है. ज़िंदा लोगों की किडनी निकाल देना, अयोग्य डॉक्टरों द्वारा आँखों का कैम्प संचालन, खून लेने-देने का कारोबार, फर्जी आई इंस्टिट्यूट और चिकित्सा के अन-एथिकल कारोबार का मकडजाल, क्या ऐसे माहौल में डॉक्टरों द्वारा ली गयी शपथ का कोई औचित्य रह जाता है. आखिर कब तक ये निरंकुश होकर मानव जीवन और जीवन के पश्चात उनकी लाशों से खिलवाड़ करते रहेंगे और अपना मौत और लाशों का कारोबार बेख़ौफ़ चलाते रहेंगे. अगर इनको रोका नहीं गया तो वो दिन दूर नहीं जब बकरों, भैंसों की पशु बढ़-शाला की तरह मनुष्यों की लाशें भी दुकानों पर खूंटी पर टंगी दिखाई देंगी रेट लिस्ट के साथ या फिर शायद कभी सुबह-सुबह आलू ले लो, टमाटर ले लो की जगह सुने पड़े कि गुर्दे ले लो, आँखे ले लो……… या फिर शायद मुर्दा ले लो मुर्दा.
शर्म और लाज को खूँटी पे टांग दो, घबराओ मत लालच को मुंह मांगी मांग दो पहरेदार यहाँ सोते हैं घोड़ों को बेचकर यदि जागा मिले कोई तो उसके मुंह में भी भांग दो कुछ भी करो तुम मत डरो निर्भीक रहो तुम और अपने धंधों को कोई नया फिर मुकाम दो.
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