विगत एक या शायद दो दशकों से अपने राजनीतिक करिअर को चमकाने के लिए एक नयी युक्ति प्रयोग में लाई जा रही है. वो चाहे राष्ट्रपिता को गाली देना हो, या अपने राष्ट्र को. दुश्मन देश की हिमायत हो, आतंकवादियों, राष्ट्रद्रोहियों की हिमायत हो या अलगाववादी झलक वाली बयानवाजी. अपने नाम को सुर्ख़ियों में लाने के लिए या सिर्फ वोट के लिए तुस्टीकरण की राजनीति ही है. इसके उदाहरण एक ढूँढो पचास मिल जायेंगे. इस समय कश्मीर को लेकर भी ऐसा ही किया जा रहा है. फिर वो वयान चाहे किसी का हो, बयान के पीछे छिपे निहितार्थ का आंकलन किया जा सकता है. ठीक इसी तरह की किसी घटना की प्रतिक्रियास्वरूप कभी मैंने चार लाईने लिखी थीं, जो मुझे लगता है की आज इस प्रबुद्ध मंच को अवश्य समर्पित की जानी चाहिए.
हे राष्ट्रपिता, महात्मा गाँधी, तुम हो कितने महान, हम सब कितने बौने हैं, तुम कितने आलीशान. वो, जिन्होंने दी थी, तुम्हें सरेआम गाली. उन्हीं से, तुमने मुस्कुराते हुए, माला गले डलवा ली. वाकई, बापू तुम आज भी महान हो हम सब कितने बौने हैं. तुम कितने आलीशान हो.
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