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दैनिक जागरण के सम्पादकीय में श्रीमान राजीव शुक्ल जी को सांसदों को मिलने वाले वेतन पर दिए गए उनके विचारों से अवगत हुआ. श्रीमान के अनुसार सांसदों पर बहुत अत्याचार हो रहे हैं उनको मिलने वाले वेतन को लेकर, जोकी उनके अनुसार बहुत ही कम है और इस सम्बन्ध में वो कई विदेशी मुल्कों के सांसदों को मिलने वाले वेतन से यहाँ की तुलना करते हैं. परन्तु वे ये तुलना करना भूल जाते हैं कि हमारे मुल्क की जनता की औसत आय और उन मुल्कों की औसत आय में जमीं आसमान का अंतर है. दरअसल ये नजीर रही है कि कुछ भी हो जब सांसदों का या विधायकों का वेतन बढ़ने का प्रस्ताव हो तो ये एकजुट हो जाते हैं वैसे चाहे कोई देश के लिए कितना ही लाभप्रद प्रस्ताव हो, सिर्फ राजनीतिक कारणों से विरोध करना ही इनका धर्म हो जाता है. अच्छा होता अगर श्री शुक्ल जी एक राजनीतिक के बजाये एक सम्माननीय अख़बार के संपादक या लेखक की तरह सोचते तो उनके प्रति लोगों की श्रद्धा में वृद्धि ही होती. उम्मीद है भविष्य में उनके लेख निजी फायदों से परे होंगे.
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