एक ही हवस, एक ही भूख, एक ही लालसा, सिर्फ और सिर्फ सुर्खियाँ बटोरना. बस यही एक चाहत राखी को विवश करती है हमेशा विवादास्पद हरकतें करने को और विवादास्पद भाषा का प्रयोग करने को. फिर चाहे वो अभिषेक प्रकरण हो, मीका प्रकरण हो या फिर स्वयंबर रचने का नाटक. राखी है तो लोकविरुद्ध व्यवहार की शत फीसदी संभावना है. इसमें एक और कड़ी जुड़ गयी है, राखी का इन्साफ. राखी की विवादस्पद छवि को भुनाने के लिए ही चैनल ने राखी को सिर्फ और सिर्फ टी.आर.पी. के लालच से रखा है. क्योंकि न तो राखी के पास कोई क़ानून की डिग्री है और शायद न ही कोई मनोविज्ञान की डिग्री. और तो और राखी की छवि और स्वाभाव के विपरीत भी है इस तरह की जिम्मेदारी. चैनल की आशानुरूप राखी उम्मीदों पर खरी भी उतर रहीं हैं. राखी की अनर्गल भाषा के चलते प्रोग्राम चर्चा का विषय बना हुआ है. अभिषेक, मीका और ईलेश को तो राखी के व्यवहार के प्रतिफल में लोकप्रियता मिली परन्तु बेचारे लक्ष्मण को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. उत्तर प्रदेश के झाँसी के रहने वाले लक्ष्मण का अपनी पत्नी अनीता से विवाद चल रहा था. अनीता उसे छोड़कर अपने मायके में रह रही थी. मामले को सुलझाने की गरज से लक्ष्मण कुछ लोगों की सलाह पर राखी के इंसाफ कार्यक्रम में जाने को तैयार हो गया. जिन्होनें भी वो एपिसोड देखा होगा सब गवाह होगें की पुरे एपिसोड के दौरान राखी ने कई बार नपुंसक और नामर्द कहकर लक्ष्मण को अपमानित किया. इस दौरान लक्ष्मण के मामा बलवीर पर अनीता के साथ अनैतिक सम्बन्ध बनाने के लिए दबाब बनाने के आरोप भी खुलेआम लगाये गए. पूरे एपिसोड के दौरान लगातार राखी की भाषा अभद्र ही रही. इस सार्वजानिक अपमान का लक्ष्मण ने जब विरोध किया तो राखी ने अपशब्दों का प्रयोग कर उसे और उसकी माँ सावित्री देवी को बाहर करने को कहा. ऐसे इल्जाम सावित्री देवी ने झाँसी के प्रेम नगर थाने में दर्ज ऍफ़.आई.आर. में लगाएं है. सार्वजनिक अपमान के अतिरेक में लक्ष्मण बीमार हो गया और अंततः वो अपमान का घूँट लक्ष्मण के लिए जहर का घूँट साबित हुआ, परिणामतः आज वो इस दुनिया में नहीं है. राखी और आठ अन्य लोगों पर सावित्री देवी ने ऍफ़.आयी.आर. दर्ज कराई है. राखी के इन्साफ में राखी की अभद्र भाषा पर पंजाब के खेल, पर्यटन एवं संस्कृति मामलों के मंत्री ने केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को शिकायत दर्ज कराई की है और पंजाब में इसका प्रसारण रोकने की प्रार्थना की है. सवाल यह है की फिल्मों में अभद्र भाषा के प्रयोग को रोकने के लिए सेंसर बोर्ड है तो ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने की क्या व्यवस्था है? एक ऐसी औरत जो अपनी भद्दी हरकतों और अभद्र विवादस्पद बयानों के लिए कुख्यात हो, क्या किसी भी प्रकार से किसी भी न्याय की कुर्सी पर बैठने के लायक है? क्या इस प्रकार के कार्यक्रमों से किसी का भला हो सकता है? यह विचारना बहुत आवश्यक है. घरेलू झगड़ों को सार्वजानिक करने की परिणति क्या हो सकती है, और वो भी अशालीन, अमर्यादित ढंग से, हम सब अभी अभी देख चुकें हैं. रावण की बहन सूर्पनखा का व्यवहार जब अमर्यादित हो गया तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को सूर्पनखा के नाक-कान काटने का आदेश दिया था. प्रतिशोध में सूर्पनखा नें अपने भाई को भड़काकर सीता-हरण करवाकर श्री राम जी से बदला ले लिया था. तो क्या आज सूर्पनखा ने लक्ष्मण ने बदला ले लिया. क्योंकि आज के युग की सबसे अमर्यादित स्त्री सूर्पनखा की संज्ञा केवल राखी को ही दी जा सकती है. राखी के इन्साफ कार्यक्रम द्वारा हुई लक्ष्मण की ह्त्या की जिम्मेदारी राखी और चैनल की नहीं है, क्या इसका इन्साफ नहीं होना चाहिए?
इन्साफ की कुर्सी जलील हो गयी, खुद ही जज औ खुद ही वकील हो गयी. जिरह करती है बेशर्मियत की हद तक, औरत की साख पे तू कील हो गयी. हाँ चर्चा-ऐ-आम है आज तू राखी पर, तुझसे स्त्रीत्व शर्मिन्दा हो गयी.
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