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क्यों है चिंतित प्यारे मानव, सब सुख सुविधा के होते-सोते
मैने पूछा खुद से यह भी, ए सी की ठंडक में सोते-सोते
जिधर भी जाओ उतरे हैं चेहरे, अजीब उदासी से घिरी हैं आंखें
हाल पूछते भी डर लगता है, कहीं भीग उठे न इनकी पलकें
इतना पैसा, इतने बंग्लें, इतनी कारें, इतनी सहुलतें
फिर किसका इंतजार है आंखों को, थक गई राह किसकी तकते-तकते
क्यों बेबस है मानव प्यारे, गुस्से से भी इतना भरके
मैने भी महसूस किया है उर्म के पड़ावों से गुजरते-गुजरते———-
दया दान भी हम करते ऐसे, झोली खुद की भरने की कोशिश करते
दाता हूं बस मेरा नाम हो, झुक जाए सब ऐसी शान हो
पर जितनी तारीफ मिलती जाए, मन का लोटा खाली ही पाएं
क्यों बैचेन है मानव प्यारे, इतनी वाह-वाह को लूटे-लूटे
देखा है मैने महलों में रहने वालों को, दो पैसों पर लड़ते-लड़ते———-
रिश्तों की भरमार है घर पर, चाचा, मामा, ताई, फूफा, वो मेरी पड़ोसन
पर आए जब भी घोर मुसीबत, किसे बुलाउं दिमाग में घिर आए कंफूयजन
मैने कब किसका थामा दामन, मैने कब किसके पोंछे आंसू इन्हीं सवालों से भर जाए मन
क्यों तन्हा है मानव न्यारे इतनी भीड़-भड़के में भी रहते –रहते—————-
इतने हो गए हैल्थ कांशियस, पीते हम बस आर ओ का पानी
भोजन में हो भरपूर विटामिन, बस सदा जवां रहने की हमने है ठानी
गए शरण में हम आर्युवेद के, नित नए प्रयोगों की करें मनमानी
ढूंढे सुंदरता के हर पल नुस्खे , बीत न जाए बस यह जवानी
पर कितने बीमार हो प्यारे मानव, इतने टॉनिकों को भी पीते-पीते
देखा है मैने शुद्धता का दम भरने वालों को, केंसर से पीड़ित होते-होते
बच्चों को मिल जाए बेहतर से बेहतर, हर पल इस चिंता में जाएं
बढ़िया स्कूल हो, बढ़िया कोचिंग, बस इनका गोल्डन फयूचर बन जाए
पहने अच्छा, बने आधुनिक, खाएं तो ये अच्छे से अच्छा
दूजे से न पीछे रह जाए आएं अव्वल हरदम रहे यह इच्छा
पर क्यों परेशान हो प्यारे मानव अलबेलापन बच्चों का सहते-सहते
रोज देखते हैं इन्हीं लाडलों के कारनामों से मां बाप को रोते-बिलखते
मीनाक्षी भसीन 2-09-15© सर्वाधिकार सुरक्षित
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