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डीटीसी बसों ने

जैसी सोच वैसा वक्त
जैसी सोच वैसा वक्त
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इन डीटीसी बसों ने, तो यम का चोला पहन लिया
सड़को पर जाते इंसानों को, सर्प के जैसे निगल लिया

रुकती नहीं वहां पर, जहां पर स्टाप हो लिखा हुआ
थम जाती हैं वहीं पर, जहां पर ड्राईवर का मन हुआ

परेशान सवारियों को दौड़ाए, बुजर्गों पर भी ये तरस न खाए
भगा-भगा कर ये तो, हमारी एक्सरसाईज बहुत कराए

ब्रेक ये मारे ऐसे, जैसे हो मैट्रो पार्क के झूले
कभी तो भीड़ ही भीड़ से दम हमारा निकल न जाए

उस पार पर खड़े हों तो, बहुतयात में नजर ये आए
पर घर को हो जो पहुंचना, तो ईद का चांद ये हो जाए

बैठे हों जो रिकशा या ऑटो में, तो ये गुस्से से बेकाबू हो जाए
लगे चढ़ने हम पर ये, बन जाए हमारा आटा बिन चक्की में जाए

अरे अचानक ये जो मिल जाए, तो जैसे लाटरी ही निकल आए
पर करनी पड़े जो वेट इनकी, तो हाय मेरा मन बहुत घबराए

मीनाक्षी भसीन 15-10-15© सर्वाधिकार सुरक्षित

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