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मानवता करे पुकार

जैसी सोच वैसा वक्त
जैसी सोच वैसा वक्त
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जब हम जिंदगी में कोई मुकाम हांसिल कर लेते हैं तो हमारे अंदर कितना अंहकार भर जाता है कि हम अपने उन दिनों को भूल जाते हैं कि कभी हम भी उसी दौर से गुजरे थे जहां से आज ये गुजर रहे हैं। मेरे अनुसार दुनिया में मिलने वाली या नजर आने वाली सारी ताकतें चाहे वो पैसे की हों, रुतबे की हों, पोस्ट की हों, कुर्सी की हों या घर में सबसे बड़ी उर्म के सदस्य होने की हों, असलियत में ये ताकतें नहीं हैं। ये तो कीड़े हैं जो हमारी चेतना पर रेंगते हैं एवं उन तमाम लोगों का खून पीते हैं जिनके पास आज, इस समय ये ताकतें नहीं हैं। ये हमारे मन को अंदर ही अंदर खोखला बनाते जाते हैं। जरा सोचिए ये ताकतें तो तब तक ही आपका साथ देंगी जब तक आपके पास यह नश्वर शरीर हैं। वास्तविक ताकत है-आपके जमीर की, आपके नेक ख्यालात की, आपके नेक कर्मों की दौलत, जो इस जीवन में तो आपको सुख देगी ही किंतु उस जीवन में भी आपके लिए मूल्यवान साबित होगी——

मानवता करे पुकार

काश! तुमने मेरे साथ कुछ ऐसा न किया होता
तो आज मेरा दिल युं बेकरार न हुआ होता

अरे! ओ अफसर अरे! ओ अफसर, सुनो तो तुम भी आकर
अधिकारी का ताज पाकर, अब खुद पे युं इतराकर
ताकत में होश गंवाकर, अपने स्टाफ को हर पल धमका कर
फिर चेहरे पे मुस्कान लाकर, तुमने अपना हर काम न किया होता
तो मेरे मन में भी हर रोज तुम्हारे मन के रावण का पुतला न जला होता—

अरे! ओ धनवान अरे! ओ धनवान मत खाओ तुम गरीबों की जान
दूजे के श्रम के हक को खाकर, उनकी आंहों से खुद के महल सजाकर
नोटों पर नोट कमाकर, नौकरों की सेना को महलों में दफनाकर
थोड़ा तो रहम किया होता, तो खुदा ने तुझे नींद से मोहताज न किया होता——

अरे! रहते हो तुम जिस बंगले में, वो उन बाजूओं की है ताकत
जिसको तुम भेजते हो, हर घड़ी छी-छी की आज लानत
खाते हो जो तुम अन्न, वे है किसान की मेहनत का रंग
जितनी भी चीजें हैं, जो रहती हैं तुम्हारे संग-संग
इनको बनाने वालों का अगर तुमने थोड़ा सम्मान किया होता
तो हमारे आस-पास ये बैचेनी का मौसम न हुआ होता——

अरे! ओ मानव अरे! ओ मानव, सुन ले जरा मेरी जरा सी इल्तजा
कर मानवता की सेवा, यही है अल्लाह की भी रजा
मत कर गुमां पैसे का, इस शानो और शौकत का
कब बाजी पलट जाए, खौफ कर जरा खुदा का
बस ताकत है मुहोब्बत की, और न किसी चीज का पता है
अब भी, न तु जो संभला तो फिर तेरी ही खता है
जब सच में ही हर दिल में परमात्मा बसा होता
तो मेरे दोस्त हर गली में युं मंदिर न बना होता—

मीनाक्षी भसीन 12-11-14© सर्वाधिकार सुरक्षित

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