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हां– मैं आम आदमी हूं
हां– मैं आम आदमी हूं, मेरा सहना तो लाजमी है,
हां– मैं आम आदमी हूं, मेरा कहना तो लाजमी है।
दिन निकले मेरा दौड़-भाग में, सूखे मुहं छाले पड़े पांव में,
खाऊं धक्के मैट्रो रिक्शा के, घूमे तन-मन बिन झूले के
हां– मैं आम आदमी हूं मेरा थकना तो लाजमी है—–
पहुंचु ऑफिस गिरता-गिराता, बॉस को भी मैं इक आंख न सुहाता
सबको तो बस काम चाहिए, हर तरफ खुद की जयकार चाहिए
हां–मैं आम आदमी हूं, मेरा तड़पना तो लाजमी है—-
घर पहुंचु तो फरमाईशों का अंबार है, ये तो कर दो, वो तो कर दो
बस हर तरफ यही पुकार है, हाय! ऊपर से मंहगाई की भी मार है,
हां– मैं आम आदमी हूं, मेरा सिसकना तो लाजमी है—-
मेरे श्रम से मेरा परिवार पलता है, मेरे श्रम से ऑफिस निखरता है
मेरे नाम से नेता वोट कमाएं, फिर भी मुझ पर कोई तरस न खाए
हां– मैं आम आदमी हूं, मेरा मरना ही लाजमी है——
आज सुन लो तुम सब लोग, अति से बड़ कर नहीं कोई रोग
शांत चेहरे के पीछे है मेरे इक तुफान, कर लो मेरा अभी तुम मान
मैं हूं अपने परिवार की मजबूत कड़ी, ऑफिस की नींव भी मेरे दम पर टिकी
अरे नेताओं चुनावों में ही सही, मेरी कीमत तो है बहुत बड़ी
सत्ता और कुर्सी तक तुम्हें पहुंचाने की मैं ही हूं सीढ़ी
हां— मैं इक खास आदमी हूं, मेरी कद्र करना ही अकलमंदी है
मुझे सुनना ही लाजमी है——-
मीनाक्षी भसीन 16-09-15© सर्वाधिकार सुरक्षित
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