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नीरजा देश की कोहिनूर

deepti saxena
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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । हमारी संस्कृति सदा ही नारियो के सम्मान की बात करती है . नारी को यदि आत्मनिर्भर बनाना है , तो ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करना अनिवार्य है , नारी को ज्ञान धन और शक्ति का प्रतिक माना जाता है.
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥ दुर्गा चालीसा का यही पंक्तिया स्पस्ट कर देती है की क्या भूमिका का नारी की हमारे देश में . यदि हम इतिहास का अध्ययन करे तो कभी लक्ष्मी बाई ने देश की अतुलनीय वीरांगना बन अंग्रेज़ो के छक्के छुड़ा दिए . तो कभी “इंद्रा गांधी ” ने देश को चलाया . कल्पना और सुनीता ने अंतरिक्ष की यात्रा भी की.

ऐसा कोई मुकाम नहीं जो नारी के लिए असंभव हो . इसी भूमिका में नाम आता है देश की वीरांगना “नीरजा ” का. नीरजा का जन्म ७ सितंबर १९६३ को पिता हरीश भनोट और माँ रमा भनोट की पुत्री के रूप में चंडीगढ़ में हुआ। उनके पिता बंबई (अब मुंबई) में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत थे और नीरजा की प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर चंडीगढ़ के सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हुई। इसके पश्चात् उनकी शिक्षा मुम्बई के स्कोटिश स्कूल और सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में हुई।नीरजा का विवाह वर्ष १९८५ में संपन्न हुआ और वे पति के साथ खाड़ी देश को चली गयीं लेकिन कुछ दिनों बाद दहेज के दबाव को लेकर इस रिश्ते में खटास आयी और विवाह के दो महीने बाद ही नीरजा वापस मुंबई आ गयीं। इसके बाद उन्होंने पैन ऍम में विमान परिचारिका की नौकरी के लिये आवेदन किया और चुने जाने के बाद मियामी में ट्रेनिंग के बाद वापस लौटीं.

मुम्बई से न्यूयॉर्क के लिये रवाना पैन ऍम-73 को कराची में चार आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया और सारे यात्रियों को बंधक बना लिया। नीरजा उस विमान में सीनियर पर्सर के रूप में नियुक्त थीं और उन्हीं की तत्काल सूचना पर चालक दल के तीन सदस्य विमान के कॉकपिट से तुरंत सुरक्षित निकलने में कामयाब हो गये। पीछे रह गयी सबसे वरिष्ठ विमानकर्मी के रूप में यात्रियों की जिम्मेवारी नीरजा के ऊपर थी और जब १७ घंटों के बाद आतंकवादियों ने यात्रियों की हत्या शुरू कर दी और विमान में विस्फोटक लगाने शुरू किये तो नीरजा विमान का इमरजेंसी दरवाजा खोलने में कामयाब हुईं और यात्रियों को सुरक्षित निकलने का रास्ता मुहैय्या कराया।वे चाहतीं तो दरवाजा खोलते ही खुद पहले कूदकर निकल सकती थीं किन्तु उन्होंने ऐसा न करके पहले यात्रियों को निकलने का प्रयास किया। इसी प्रयास में तीन बच्चों को निकालते हुए जब एक आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी चाही नीरजा के बीच में आकार मुकाबला करते वक्त उस आतंकवादी की गोलियों की बौछार से नीरजा की मृत्यु हुई। नीरजा के इस वीरतापूर्ण आत्मोत्सर्ग ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में मशहूरियत दिलाई।नीरजा को भारत सरकार ने इस अदभुत वीरता और साहस के लिए मरणोंपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है।अपनी वीरगति के समय नीरजा भनोट की उम्र २३ साल थी। इस प्रकार वे यह पदक प्राप्त करने वाली पहली महिला और सबसे कम आयु की नागरिक भी बन गईं। पाकिस्तान सरकार की ओर से उन्हें तमगा-ए-इन्सानियत से नवाज़ा गया।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम हीरोइन ऑफ हाईजैक के तौर पर मशहूर है। वर्ष २००४ में उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया और अमेरिका ने वर्ष २००५ में उन्हें जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड दिया है।
नीरजा की समृति में मुम्बई के घाटकोपर इलाके में एक चौराहे का नामकरण किया गया जिसका उद्घाटन ९० के दशक में अमिताभ बच्चन ने किया। इसके अलावा उनकी स्मृति में एक संस्था नीरजा भनोट पैन ऍम न्यास की स्थापना भी हुई है जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए महिलाओं को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है। उनके परिजनों द्वारा स्थापित यह संस्था प्रतिवर्ष दो पुरस्कार प्रदान करती है जिनमें से एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है और दूसरा भारत में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने और संघर्ष के लिये। प्रत्येक पुरास्कार की धन्राषित १,५०,००० रुपये है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्रोफी और स्मृतिपत्र दिया जाता है। महिला अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिये प्रसिद्द हुई राजस्थान की दलित महिला भंवरीबाई को भी यह पुरस्कार दिया गया था।

नीरजा की अमरगाथा भारत पाकिस्तान और अमेरिका समेत सम्पूर्ण विश्व में अमर है, नीरजा ने यह सिद्ध कर दिया की कर्म ही हमारी पहचान है, अदम्य साहस और बुद्धि का प्रयोग इस साधारण लड़की को असाधरण बना गया , इसेकहते है भारत माता की “वीर पुत्री ” वास्तव में हिंदुस्तांन की शेरनी जिस पर सदियों तक देश को नाज़ रहेगा , हमारे सैनिक जब सरहदो पर कुर्बानी देते है अपने प्राणो की तो उन्हें भी ऐसे “नागरिको ” पर नाज़ होता है , जो देश के लिए मरमिटने को तैयार है . आज मुझे एक कविता की पंक्तिया याद आ रही है . जो कहती है की “वो खून कहो किस मतलब का जिसमे उबाल का नाम नहीं , वो खून कहो किस मतलब का जो आ सके देश के काम नहीं “.

नीरजा का जीवन वास्तव में कर्मठता का उदाहरण है , इसलिए देश के हर नागरिक को तैयार रहना होगा की जब समय आये तो देश के लिए कतरा कतरा बहा दे खून का , अपने बस में जो कुछ हो वो सब कुछ करे देश के लिए . नीरजा की ख़ूबसूरती देश का नूर है, नीरजा की वीरता वास्तव में हिमालय से भी बड़ी है, आज ३० साल बाद भी देश सलाम करता है “वीरांगना ” को . देश की गौरव “नीरजा ” को सलाम .

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