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समाज की नीव को यदि मज़बूत करना हो , तो शिक्षा से अधिक सबल और शस्कत अन्य कोई हथियार नहीं . एक समय था जब हमें ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करनी थी, किन्तु आज वास्तविकता में हमें ज़मीनी स्तर पर स्वतंत्रता प्राप्त करनी है. हमारे समाज में ऐसे कितने लोग है जो देश को कुछ देना चाहते है? मनुष्य भगवान की सर्वोच्च रचना है, हम बुद्धि, बल और ताकत के आधार पर क्या हासिल नहीं कर सकते? ऐसा कहा भी जाता है की कुछ पाने के लिए सिर्फ और सिर्फ मज़बूत इरादो और बुलंद हौसलों की ज़रूरत होती है, क्योकि बाकि का रास्ता तो मंज़िल को पाने की चाहत में ही आसान हो जाता है?
हमारे समाज में आज भी कुछ ऐसे युवा है जिनकी काबिलियत पर देश को ही नहीं बल्कि इंसानियत को भी नाज़ है. सिर्फ ऐसे ही नहीं कहा जाता है” की सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तान हमारा” क्योकि देश महान तब बनता है , जब वहा के युवा के मंन कुछ करने की चाहत हो, समाज को एक दिशा दिखाने का ज़ज़्बा हो ?
आज हम बात कर रहे है “सूर्य प्रकाश राय” की जिन्होने अपने नाम स्वरुप ही समाज को शिक्षा का उजाला दिया. सूर्य प्रकाश राय ने बिहार में एक छोटे से गाँव जो गोपालगंज डिस्ट्रिक्ट में है, वहा एक प्रयोग लाइब्रेरी की शुरआत की. जो आज 12 गाँव के 400 बच्चो के सपनो को सच कर रही है. सूर्य के मंन में एक चाहत थी की वो शिक्षा को बिहार के गाँव में शस्कत बनाये”.प्रयोग लाइब्रेरी ” की शुरआत जून 2013 से हुई , शुरआत में बच्चो का शिक्षा के प्रति अधिक रुज़ान न था, कुछ चार पांच बच्चे ही आते थे, कारण था माँ बाप की शिक्षा के प्रति उदासीनता . परन्तु आज 400 बच्चे न सिर्फ वहा जाते है , बल्कि अपने जीवन के सपने भी बुनते है.
लाइब्रेरी न्यूज़ पेपर्स के साथ साथ बच्चो को उनकी इच्छानुसार पुस्तके देती है, लोगो का ध्यान आकर्षित करना आसान कार्य नहीं होता इसलिए एक नया कदम उठाते हुए बच्चो को “परिवर्तन समाज संस्थान” में भेजा गया जहाँ बच्चो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि योगा, डांस , और पेंटिंग की क्लासेज में भाग लिया , वास्तव में यह एक सहनीय प्रयास है, क्योकि आजकल बच्चो के सम्पूर्ण विकास की बात की जाती है.
बच्चे हमेशा कच्ची मिटटी के घड़े होते है, उनकी परवरिश , शिक्षा उनके व्यक्तित्व को निखारने में एक अनूठा भाग निभाती है.इसलिए बच्चो के विचार उनकी गाँव की तरक्क़ी के लिए पूछे गए. उनसे पुछा गया की एक “आदर्श ” गाँव का निर्माण किस प्रकार हो सकता है. उनके विचारो को जानकर लगा की वास्तव में बच्चे अपने गाँव अपनी मिटटी को लेकर कितने सजग है. यह सब देख गांधीजी का कथन याद आता है “की यदि भारत को देखना है , तो गाँव को देखिये” क्योकि भारत की आत्मा का वास भारत के गाँव में ही है .
युवा न सिर्फ देश की नीव से जुड़ा है, बल्कि उसे सवारने का भी कार्य कर रहा है , वास्तव में यह प्रयास सरहनीय है, क्योकि हम सब तो बापू को सिर्फ पुस्तको में ही सम्मान देते है , परन्तु “प्रकाश राय ” ने तो वास्तव में” बापू” को दिल से सच्ची श्रद्धांजलि दी है. सूर्य प्रकाश राय को प्रमुख रूप से दो समस्याए गाँव में दिखी पहली थी शिक्षा दूसरी बिज़ली.
ज़्यादातर बच्चे स्कूल जाने के बजाए ट्यूशन क्लासेस जाना पसंद करते थे. इस परेशानी को दूर करने के लिए एक सकारात्मक कोशिश की गयी, बड़ी कक्षाओ में पढ़ रहे बच्चो से कहा की वो छोटे बच्चो की मदद करे ? यह प्रयास कारगर सिद्ध हुआ, बच्चो का मंन स्कूल की तरफ ज़्यादा लगने लगा.
हमारा देश “जाति वाद ” से आज भी घिरा हुआ है, आज भी समाज के जो वर्ग पिछड़े है, जिन शहरों गाँव में बिज़ली पानी जैसी मूलभूत समस्याओ से ही लोग ग्रसित है , वहा तकनीक , या विकास की ओर कौन पहल करेगा? प्रयोग ने इस समस्या का भी निदान किया और आज लाइब्रेरी में सभी जाति के बच्चे एक साथ पढ़ते है? क्या यह एक क्रन्तिकारी परिवर्तन नहीं है? कहते है यदि समाज को बदलना हो तो सोच में विचारो में परिवर्तन लाना ज़रूरी है. तभी बदलाव आता है?
वास्तव मे कलम की ताकत तलवार से ज्यादा होती है, बिना रक्त पात या शोर शराबे के कैसे समाज को बदला जा सकता है यह प्रयोग की टीम ने करके दिखाया है. दूसरी मूलभूत समस्या थी बिज़ली जिससे लड़ने के लिए प्रयोग की टीम ने सोलर लैंप का प्रयोग किया? बच्चो को “सोलर लैंप” दिए गए जिससे वो रात को भी पढ़ सके. शायद दिवाली का सही उद्देश्य प्रयोग की टीम ने पहचाना .
सिर्फ घरो में ही नहीं बल्कि मासूम बच्चो के जीवन में उनके मंन में भी आने वाले भविष्य को प्रयोग की टीम ने रोशन किया.समय के साथ जीवन भी बदला है, आम ज़िंदगी में टेक्नोलॉजी का प्रयोग आम बात है .इसलिए प्रयोग टीम का यह प्रयास है की बच्चो को टेबलेट का प्रयोग भो सिखाया जाये.
वास्तव में हमारे कर्म ही हमें भीड़ से अलग पहचान देते है .एक कोशिश जिसने बदल दी “बिहार के बच्चो ” की ज़िंदगी . कई बार सरकार कई कार्यक्रम चलाती है. जैसे “बेटी बचाओ , बेटी पढाओ” “मुफ्त चिकित्सालय ” मुफ्त शिक्षा क्योकि हमारा संविधान सबके विकास की बात करता है. सरकार भी हर बार यही कहती है की सबका साथ हो सबका विकास ” हो पर एक आम नागरिक किस प्रकार आने वाले कल को बदलता है? यह तो देखते ही बनता है. नागरिको को सिर्फ अधिकार की ही नहीं नहीं बल्कि कर्तव्यो की भी बात करनी चाहिए . कर्तव्य और अधिकार यह तो एक सिक्के के दो पहलु है.
निर्माण , सृजन और कलात्मकता यह वो शस्कत खम्बे है जिन पर कोई भी देश अपना भविष्य तय करता है. इंसान की सीरत ही आने वाले कल का इतिहास लिखती है. अपने आप पर विश्वास और कुछ पाने की चाह तो शायद हम सबमे कही न कही होती है. पर उसी चाहत को दूसरो से जोड़ना , अपने साथ साथ समाज का विकास करना यह खूबी तो सिर्फ किसी “नायक” में ही हो सकती है. क्योकि नायक ही उम्मीद का दिया रोशन करता है. बच्चे देश का भविष्य होते है? ऐसा कहना और इसे आत्मसाथ करना दोनों में फर्क है, और यह वही अंतर है जो कभी कभी इंसान को भी दूसरो का “भगवान” बना देता है.
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