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“अनेकता में एकता ” यह हमारी संस्कृति की मिसाल है, भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है या पूर्व से पच्छिम तक प्राकर्तिक विभिन्ता से सज़्ज़ित है. यह सिर्फ कहने भर के लिए या प्रतियोगिता में वाद विवाद करने के लिए ही नहीं है, परन्तु हमारी संस्कृति की “एकात्मकता ” इसमें बसी है , जैसे भाषाए अनेक परन्तु वेद चार ही है, रामायण , महाभारत आपको हर भाषा में मिलेगी. हमारी संस्कृति किस प्रकार से मिलीजुली है इसका सबसे बड़ा उदहारण हमारे त्योहारो में भी देखने को मिलता है .
मकर संक्रान्ति हमारे देश का एक प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है।उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। एक समय था जब उत्तर भारत में है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे परन्तु अब समय के साथ लोगबाग बदल गये हैं। परन्तु फिर भी ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है।बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।
बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -“लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला” अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-“सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।”तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।
सम्पूर्ण भारत में चाहे नाम कुछ भी हो , स्थान कुछ भी , परन्तु फिर भी यह त्यौहार अलग अलग रूप में मनाया जाता है. “ऐसा कहा जाता है ” की दान इस प्रकार से देना चाहिए ही दायें हाथ से दो तो बाये हाथ को भी पता न चले . मतलब गीता के शोल्क से लेकर आम इंसान की ज़िंदगी तक में “कर्मो का महत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है” . एक मिलीजुली सुसंस्कृत सभयता जो पुरातन काल से चली आ रही है, एक इतने बड़े प्रान्त को देश को जोड़ने में छोटी छोटी बातो ने कितनी एहम भूमिका निभायी है , यह हमें लोकसंस्कृति से पता चलता है. कहते है की ज़िंदगी के ताने बाने को बुनने के लिए अनुभव की ज़रूरत होती है .
शायद भारत की भूमि पर जन्मे हमारे पूर्वजो ने इस बात को अनुभव कर लिया था. इसलिए हमारा जुड़ाव हमारी लोक कला और संस्कृति में दिखाई देता है. मकर संक्राति पूरे हिन्दुस्तान में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है, या अलग शब्दों में कहा जाये तो लोगो का आपसी मेल जोल इन्ही त्योहारो की नीव पर टिका हुआ है. विदेशो में लोग क्लब हाउस बनाते है , ताकि सामाजिकता की भावना का विकास हो सके . पर हमें शायद कुछ ऐसा करने की ज़रूरत ही नहीं है.
आप मकर संक्राति पर आकाश की ओर देखिये “पतंगो” से घिरा रंग बिरंगा सुन्दर सा आसमान किसी “स्वर्ग ” से कम खूबसूरत नहीं दिखता. “पतंग ” के इस त्यौहार को जयपुर में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है . देश वासियो के साथ साथ पतंगे विदेशियो का मन भी अपनी ओर मोह लेती है. सच में कितना अनूठा प्रयास है लोगो को एक साथ एक मंच पर लाने का. जीवन में यदि रंग भरने है तो मन का प्रफुल्लित होना बहुत आवश्यक है, और यह कोई मेडिसिन या किसी बाहरी ख़ूबसूरती से संभव नहीं है. हमारा देश प्राकर्तिक विभिन्ताओ के लिए जाना जाता है. इसलिए कही प्रकर्ति मेहरबान है , तो कही उसकी कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ता है. पर हमारे देश वासी प्रकर्ति की कठिनाईयों को दिल से नहीं लगाते है. हर संभव प्रयास करते है जीवन को खुशहाल बनाने का . मकर संक्राति का महत्व आज लोगो के जीवन में दिखाई देता है. क्योकि मोबाइल पर मेसेज भेज़ना इ कार्ड्स के द्वारा एक दूसरे को बधाई देना. प्यार भरे सन्देश भेज़ना.
त्योहारो के पीछे लोक गाथाये अवश्य होती है, समय निकाल कर उन्हें जानने का प्रयास अवश्य करे . क्योकि तभी ख़ूबसूरती के साथ साथ हमें इसमें कारण भी दिखाई देंगे.
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