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हमारा देश परम्पराओ और संस्कृति का विधाता है, हर एक भारतीय का अपने समाज अपने आदर्शो पर बड़ा ही गर्व है, और होना भी चाइये क्योकि यह हमारी संस्कृति ही है जो दो लोगो को जन्मो के लिए एक कर देती है, शादी सिर्फ दो लोगो का ही नहीं पर दो आत्माओ का दो परिवारो का मिलन है . कितने सुन्दर समाज की नीव रखी थी हमारे पुरखो ने , एक ऐसा तोहफा जो हमें “लाइफ पार्टनर” के रूप में मिलता है. पर जब भी कभी मैं “क्राइम” टीवी सीरियल्स देखती हु, पति पत्नी को लड़ता. अलग होता हुआ देखती हु तो दुःख होता है, जिस संस्कृति में पत्नी को अर्धांगिनी माना जाता है , वहा कैसे कोई अपनी पत्नी पर अत्याचार कर सकता है? क्योकि अर्धागिनी मतलब तो आधा हिस्सा होता है शरीर का ही नहीं बल्कि मन और आत्मा दोनों का ही भागिदार ? तो क्या आप अपने ऊपर अत्याचार कर सकते हो.
क्यों समाज में एक इंसान अपनी बुद्धि खो देता है, अग्नि के साथ फेरे लेते हुए पति पत्नी एक दूसरे को वचन देते है की वो सदा ही एक दूसरे के साथ रहेग़े. जो दो लोग एक दूसरे के साथ न खड़े हो सके बुरे वक़्त में एक दूसरे का साथ न दे उन्हें ” शिव गौरी” जैसा कैसे माना जा सकता है? कहने को तो माँ ममता दया त्याग की मूरत है. पर जब वो सास बनती है तो घर के और बच्चो की तरह क्यों नहीं बहु को भी बिठा गरम खाना खिला सकती ? समाज के कानून कहते है की बहु का फ़र्ज़ है की वो सास ससुर मैं माता पिता की छवि देखे , तो क्या सास ससुर बहु को बेटी नहीं मान सकते ? बेटी कहना और दिल से किसी को बेटी मानना दोनों में फर्क है? क्योकि जिसके साथ खून का रिश्ता हो उसे ताने नहीं मारे जाते? आज भी कितने ही घरो में “बहू” से उम्मीद की जाती है की वो उनके बेटे को गरम खाना ज़रूर खिलाये ? वर्किंग हो पर मर्यादा का ज्ञान अवश्य हो . और जब ज़रा सा वो अधिकारों की बात करे तो “बेटे” को एक आदर्श बेटा बनना है माँ की आखो का तारा . माँ या परिवार के खिलाफ कैसे बोले?
समाज गुंडों से बहुत परेशान रहता है, हम साइंस का इस्तेमाल करते है, और कोख में ही बच्ची की जान ले लेते है , पर हम समाज के सम्मानीय कहलाते है, घर के बड़ो के सामने शादी का अपमान होता है पर वो कुछ नहीं कहते , पति मूक प्राणी जैसा खड़ा पत्नी और होने वाले सारे अत्याचार देखता है पर कुछ नहीं बोलता . क्या हम सब जानते है की हम सब के मौन में जो दम तोड़ता है तो वो है “शादी”? आखिर आज भी चाहे वो पति हो या फिर पत्नी क्यों अपने रिश्तो को अपनी शादी अपनी पहचान को खुशहाल नहीं बनाते . मैं कभी यह ठीक नहीं मानती की माँ बाप को घर से निकालो , या उनका अपमान करो पर सही गलत का फर्क समज़ना ज़रूरी है ? पहली बात यह की धरती पर भगवान कोई नहीं , जब इंसान का शरीर ले भगवान भी धरती पर जनम लेते है तो वो भी गलतिया करते है? क्षमा मागते है. तो हम इंसान क्यों अपनी बुद्धि को ताक पर रख देते है? लाइफ पार्टनर कहना पर दिल से मानना दोनों में बहुत अंतर है. कानून सिर्फ इन्साफ करता है पर जीवन नहीं लौटा पता. आजकल लोग शादी से डरते है, कमिंटमेंट से दूर भागते है, बंदन को बोज़ समज़ते है. क्यों हमने रिश्तो की सूरत इतनी भयानक बनादी है. “रिश्ता वही” सोच नयी के नाम पर स्टार प्लस को पॉपुलर चैनल l बेमिसाल 15 साल के
नाम पर हम क्या क्या उपाधि देते है? पर असल ज़िंदगी में क्या करते है?मैं बस इतना चाहती हु की शादी कोई मज़ाक नहीं, न ही कोई बोज़ है, और न ही तमाशा यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है की इस रिश्ते को खूबसूरत बनाया जाये? ताकि आने वाला कल सवार सके………..
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