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ज़िंदगी में सिर्फ फूल नहीं काटे भी मिलते हैं , कभी कभी हौसले टूट जाते हैं, अपनी परछाई भी साथ छोड़ देती हैं, पर अगर मज़बूत इरादे हो तो आप सब कुछ कर सकते हो,, क्योकि हार के बाद जीत हमेशा मिलती हैं .कुछ ऐसी ही प्रेरणा का स्त्रोत हैं शी रोज ,जहां आप कॉफी की चुस्कियों के बीच एसिड अटैक विक्टिम्स की बहादुरी के किस्सी भी जान सकेंगे। इस कॉफी शॉप को एसिड अटैक विक्टिम्स ही चलाएगी .इस कैफे की शुरुआत आगरा से हुई है और जल्द ही यह कानपुर और दिल्ली में भी खुलेंगे। इस कैफे को छांव एनजीओ का समर्थन हासिल है।इस शॉप का उदघाटन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया और इस मौके पर उन महिलाओं को सम्मानित भी किया जिन पर तेजाब से हमला हो चुका है। इस मौके पर अखिलेश यादव ने कहा कि उन महिलाओं को सम्मानित किया जिन पर तेजाब से हमला किया गया। महिलाओं के सम्मान से ही देश आगे बढ़ेगा। उन्होंने कहा की महिलाओं को अपना हौसला हमेशा बुलंद रखना चाहिए।
वास्तव में देखा जाये तो एक हादसा कभी भी ज़िंदगी को परि भाषित नहीं कर सकता, आपने कभी सोचा हैं की एक लड़की जिसके मंन में अनगिनत अरमान हो , जो कुछ करना चाहे पढ़ना चाहे आगे बढ़ना चाहे , सिर्फ किसी के “मैं” की खातिर या कुछ लोग जो सिर्फ और सिर्फ लड़कियों को एक चेहरा समज़ते हैं, खुद को मर्द मानते हैं , लड़कियों पर तेज़ाब से हमला कर देते हैं ज़ोर सोचते हैं की ख़त्म हो गयी इसकी ज़िंदगी . शी रोज एक तमाचा हैं ऐसी सोच पर की हम लड़कियां न तो बेचारी हैं न किसी की मोहताज़ . क्यों एक एसिड पीड़ित महिला अपना चेहरा ढक ले, उसका क्या गुनाह हैं? यह की वो कुछ करना चाहती हैं या आगे बढ़ना चाहती हैं?
हमारे देश का संविधान हम सबको बराबरी का अधिकार देता हैं कोई किसी प्रकार की भी ज़िंदगी का निर्वाह कर सकता हैं, कानूनन हमें पूरी आज़ादी हैं, पर यह आज़ादी सिर्फ कागज़ों पर ही क्यों हैं? क्यों असल ज़िंदगी में लड़कियों को अपने वज़ूद के लिए अपनी पहचान के लिए लड़ना पड़ता हैं. हमेशा हम लड़कियों को ही सिखाते हैं “बेटी ” ऐसा करो ऐसा मत करो ? कभी बेटो को क्यों नहीं सिखाते ?
हम सब जानते हैं की एसिड कैसे सिर्फ जिस्म को ही नहीं बल्कि इंसान की आत्मा को भी जकजोर कर रख देता हैं? ऐसे मैं समाज के ताने. पर कहते हा न की ज़िंदगी का करवा कभी थकता नहीं, उम्मीद की किरण हाथ ज़रूर थामती हैं, और आप तभी हारते हैं जब कोशिश करना छोड़ दे. शी रोज एक आवाज़ हैं एक बुलंद नारा जो सीखता हैं की हार मत मानो , लड़कियों राह यह हैं, दुनिया हमें वैसे ही देखती हैं जैसे हम खुद को देखते हैं. मेरा आप सबसे अनुरोध हैं की भारत के गर्व ” ताज महल ‘ को जब देख्ने आप जाये , तो समय निकाल कर शी रोज “कैफ़े ” ज़रूर जाये . देखिये आप आत्मविश्वास से कितने परिपूर्ण हो जाएंगे , आप ज़िंदगी को फिर से जीना चाहेंगे , वास्तव में इन बहादुर लड़कियों को सलाम इनके ज़ज़्बे को सलाम . इनकी ज़िंदादिली को सलाम ,
तरस आता हैं मुझे उन लोगो पर जो लड़कियों को सिर्फ और सिर्फ एक चेहरा मानते हैं हमारे देश में लड़कियों को आदि शक्ति , माँ दुर्गा का रूप माना जाता हैं, जो जननी हैं , और शक्ति शाली भी, तो कैसे इस देश के कुछ “बीमार” मानसिकता से ग्रसित लोग यह सोचते हैं , की एसिड डाल दो , ज़िंदगी खत्म . ऐसी ही एक और बहादुर लड़की हैं “सोनाली मुखर्जी ” जिन पर सन २००३ में जब वो सिर्फ 17 साल की थी तब उन पर एसिड अटैक हुआ था, पर वो हारी नहीं उन्होंने ज़िंदगी का डटकर मुकाबला किया, और कौन बनेगा करोडपति में 25 लाख रुपए भी जीते , उन्होंने न हार मानी और न ही वो हारी. अब तक वो 30 सर्ज़री करा चुकी हैं.
इससे कहते हैं आगे बढ़ना , “मुश्किलें दिल के इरादे आज़माती हैं , निगाहों से स्वप्न के परदे हटाती हैं , हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर मुश्किलें इंसान को चलना सिखाती हैं. वास्तव में आज मेरा विश्वास और भी पक्का हो गया हैं, की क्यों हमारे देश में लड़की को माँ दुर्गा या काली माना जाता हैं, शैतान हर युग में होते हैं, और शक्ति ही उनका अंत करती हैं, माध्यम कोई भी हो पर ज़ीने की इच्छा ही हौसला देती हैं. यदि कुछ भी सीखना हैं तो इन लड़कियों से सीखो, जो आपसे किसी दया की उम्मीद नहीं रखती खुद को बेचारी नहीं समजती , आपसे किसी दान की नहीं , बल्कि अपनी काबिलियत की कदर चाहती हैं.
जब आप शी रोज में जाएंगे तब वहां मेन्यू तो होगा पर उस पर रेट नहीं होगे आप अपनी इच्छा से पैसे देसकते हैं, वहां एक बुटीक भी हैं जहां आप अपनी पसंद के कपडे भी खरीद सकते हैं. आत्मा की सुंदरता , शायद दिखाई नहीं देती , हमकहते भी हैं की सूरत नहीं सीरत को देखो , आप खुद ही सोचिये जो विपरीत परिस्थितयो में मुस्कुरा सके , कभी रुके न हर परिस्थिति में आगे बढ़ना चाहे , एक ऐसा नागरिक बनने की चाहत जिस पर नाज़ हो देश को तो इससे ज्यादा खूबसूरत कोई और हो सकता हैं? शायद कोई भी नहीं, क्योकि हर औारत एक नगीना हैं कुदरत का अनमोल तोहफा , तो उसकी इज़्ज़त करे .
यही उम्मीद करती हैं हर लड़की की उसके लिए समाज में सम्मान हो , उसकी इज़्ज़त हो , ज़रुरत हैं तो नजिरया बदलने की, क्योकि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता हैं? ज़िंदगी की रेस में वो नहीं हारता जो गिर जाता हैं, बल्कि वो हारता हैं जो गिरकर नहीं उठता . और इन लड़कियों से बड़ी कोई दूसरी मिसाल हो सकती हैं क्या ? आप खुद ही विचार कीजिए?
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