deepti saxena
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खोखली जड़ों पर कामना करता विशाल वृक्ष की ,
अनधाअनुकरण कर जीतना चाहता दौड़ ज़िन्दग़ी की,
विचारो की दासता को कायम रख सोचता आसमान में उड़ने की.
तोड़ कर किसी का विश्वास ,कुर्सी पर बैठ बजाता शंख्नाद.
कश्मीर है त्रस्त पर है सिर्फ और सिर्फ वार्ता???
युवा है टूटा , पर है सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ….
सिर्फ करो सवाल , उठाओ उंगली , पर मत देखो तुम “आज” ???
समय है साथ बढ़ने का पर आज भी “धर्म” के नाम पर ही है हमको बटना???
आस्था नहीं है मन का विश्वास, यह तो है सिर्फ कुछ लोगो की जमात…
सुकून नहीं ” सौम्यता नहीं” सिर्फ है “मुखौटा ” लगाए ” खोकली हँसी हसता ”
“आज का हिन्दुस्तान”
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