Menu
blogid : 7781 postid : 314

एक फुटपाथी कवि का दर्द

कहना है
कहना है
  • 36 Posts
  • 813 Comments

Poet

कल मैंने अपनी अप्रकाशित

कविताओं का एक बण्डल

नुक्कड़ के कोने पर बैठने वाले

छोले बेचने वाले को सौंप दिया

उसने इसे मुँह बंद करके हँसते हुए

स्वीकार कर लिया

और उसने द्वेष से

प्रभावित हुए बिना

जबाब दिया

अंततः महोदय

अब आपकी कविताएँ पढ़ी जाएँगी .


मैं उन सभी लोगों के बारे में सोचता हूँ

जो नमकीन छोले खरीदते हैं

और हाथ में गर्म दोने पकड़ते हुए

जिसके नीचे मेरी कविताएँ रहती हैं

कुछ ध्यान देते हैं और कुछ बिलकुल नहीं,

और मैं अपनी खुशामद करते हुए सोचता हूँ

एक व्यक्ति को यह बोनस में प्राप्त होता है

पांच रूपये खर्च करते हुए .


अपने घर की ओर जाते हुए

दुविधा में और शायद प्रसन्नता से

वह कविता को पढ़ता है

तब अपने हाथों की गन्दगी को

उसी कागज से पोंछ डालता है

वह कागज को नीचे गिरा देता है

जो फड़फड़ाते हुए फुटपाथ पर जा गिरता है

तब वह किसी उत्सुक राहगीर से उठाया जाता है .

मैं अपने जेब में पांच रूपये रखते हुए

अपने घर की ओर जाता हूँ

छोले वाले की बातों का

चिंतन करते हुए सोचता हूँ

अनजाने में उसके द्वारा दिया गया

रिश्वत शायद रिश्वत नहीं है

और बिना किसी विद्वेष से

मैं एक और फुटपाथी कवि हूँ .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh