Menu
blogid : 7781 postid : 196

कितने सचेत हैं हम ?

कहना है
कहना है
  • 36 Posts
  • 813 Comments
पर्यावरण से संबंधित प्रदूषणों में वायु प्रदूषण सबसे अहम् है.आज वायु प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि इंसानों का सांस लेना भी दूभर हो गया है.
वायु प्रदूषण आज की सबसे बड़ी समस्या हो गई है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते श्वास संबंधी समस्याओं ,ह्रदय जनित बीमारियों,फेफड़े के कैंसर आदि में बहुत वृद्धि हुई है.वायु प्रदूषण के कारण साँस लेने में तकलीफ,कफ,दमा,अलर्जी संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं.
वातावरण जनित वायु प्रदूषण
वातावरण जनित वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत ओजोन,नाईट्रोजन डायआक्साइड और सल्फर डायआक्साइड है.वायु प्रदूषण के कारण दुनियां भर में 3.3 करोड़ मौतें हुई हैं.विकासशील देशों में वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा 5 वर्ष से कम के बच्चे प्रभावित होते हैं.


वायु प्रदूषण के इतने कारक हैं कि इनकी गिनती कठिन है.मनुष्य के जीवन का सबसे ज्यादा वक्त घर के अन्दर ही बीतता है.ऐसे में कमरों के हवादार नहीं होने से व्यक्ति सबसे ज्यादा घर में ही प्रभावित होता है.धरती के कुछ हिस्सों में जमीन से रेडोन गैस निकलती है जो व्यक्तियों को घरों में ही प्रभावित कर देती है. मकान बनाने के साधनों जैसे-कारपेटिंग और प्लाईवुड, फार्मेल्डीहाइड का उत्सर्जन करते हैं.पेंट और उसमें मिलाने वाले रसायन सूखने पर वाष्पशील रासायनिक यौगिक बनाते हैं.लीड पेंट धूल बढ़ाता है.हालाँकि एस्बेस्टस का प्रयोग अब कई देशों में प्रतिबंधित है फिर भी इसके अधिक इस्तेमाल से ऐस्बेस्टोसिस नामक गंभीर बीमारी हो जाती है जो फेफड़े के उतकों को प्रभावित करती है.लम्बे समय तक एस्बेस्टस के संपर्क में रहने पर सांसों का टूटना एवं फेफड़े के कैंसर हो सकते हैं.

ऐच्छिक रूप से वायु प्रदूषण एयर फ्रेशनर,सुगन्धित पदार्थों आदि से होता है.स्टोव और फायरप्लेस में लकड़ियाँ जलाने से घर के अन्दर और बाहर काफी धुंआ फैलता है.कीटनाशक और रासायनिक स्प्रे का बिना वेंटिलेशन के छिड़काव काफी नुकसानदायक हैं.



A

वायु प्रदूषण जैविक स्रोतों के द्वारा भी घरों में होते हैं.पालतू जानवर डैंडर उत्पादित करते हैं,बिस्तर से डस्ट माईट,कारपेटिंग एवं फर्नीचर से एनजाईम्स,एयर कंडिशनर से लैजियोनेयर्स नामक बीमारी होती है.घर के अन्दर लगाने वाले पौधों,मिट्टी और गार्डन से पराग कण एवं धूल उत्पन्न होते हैं.


लोग अक्सर जगह की कमी के चलते बेडरूम में ही फ्रिज रख देते हैं.फ्रिज से क्लोरोफ्लोरो कार्बन का उत्सर्जन होता है जो न कि हवा को प्रदूषित करता है बल्कि ओजोन परत को भी क्षति पहुंचाता है.आज जबकि विकसित देशों में में इसकी उन्नत तकनीक मौजूद है,वे इसे विकासशील देशों से साझा नहीं करना चाहते.कारण इसमें उनकी भारी धनराशि अनुसन्धान एवं विकास के कार्यों में लगी होती है.यही कारण है कि पर्यावरण से संबंधित जितने भी अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन हो रहे हैं,उनमें विकासशील देशों की भागीदारी बहुत कम होती है और वे किसी एजेंडा पर सहमत भी नहीं होते.

कारखानों से निकलने वाला जहरीला धुआं
कारखानों से निकलने वाला जहरीला धुआं
बाहरी कारकों में ज्यादातर तेलों के जलने एवं कल-कारखानों से निकलनेवाले धुँएं से वायु प्रदूषण बढ़ता है.पुरानी मोटर गाड़ियों और बिना रखरखाव के चलने वाले गाड़ियों से धुओं का गुबार लग जाता है और सड़क पर चलने वाले लोग नाक पर रूमाल रख कर किनारे हो जाते हैं.मोटर वेहिकल एक्ट में यह प्रावधान है कि वाहनों की नियमित अन्तराल पर प्रदूषण एवं उत्सर्जन की जाँच आवश्यक है,पर ऐसा होता नहीं.महानगरों में तो 10 या इससे अधिक वर्ष पुरानी गाड़ियों के परिचालन पर रोक है एवं सी.एन.जी को बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन अन्य शहरों की स्थिति दयनीय है.
कल-कारखानों को लायसेंस देते वक्त कई शर्तें रखी जाती हैं,जिनमें प्रदूषण के मानकों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है,लेकिन हकीकत में इसका पालन नहीं होता. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण हर साल 2 .4 करोड़ व्यक्तियों की मौत हर साल हो जाती है और इनमें भी 1.5 करोड़ लोगों की मौत अन्तः वायु प्रदूषण के कारण होती है.


मास्क पहनकर वायु प्रदूषण से बचाव की कोशिश
मास्क पहनकर वायु प्रदूषण से बचाव की कोशिश

ब्रिटेन के बर्मिंघम विश्वविद्यालय ने अपने शोध में पाया है कि मोटर गाड़ियों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण से निमोनियां से होने वाली मौतों का सीधा सम्बन्ध है.दुनियां में सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों से अधिक मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं.अमेरिकी पर्यावरण नियंत्रण संगठन का अनुमान है कि मोटर गाड़ियों के डीजल इंजन में मामूली बदलाव से कई हजार मौतों को रोका जा सकता है.

भारत में वायु प्रदूषण की सबसे भयानक स्थिति भोपाल गैस कांड के रूप में उत्पन्न हुई थी,जिनमें एक अनुमान के अनुसार 25000 लोग मारे गए और 1.5 लाख से ज्यादा प्रभावित हुए थे.


वायु प्रदूषण के इतने घरेलु और बाह्य कारक हैं कि इनसे बच पाना कठिन है लेकिन कुछ सावधानियां निश्चित रूप से बरती जा सकती हैं.महानगरों में हालाँकि पौलीथीन का प्रयोग नहीं होता,लेकिन अन्य शहरों में पौलीथीन का प्रयोग बदस्तूर जारी है.लोग इसके उपयोग के बाद कूड़े के ढेर में फ़ेंक देते हैं,फिर जला देते हैं.इससे खतरनाक रासायनिक रसायन निकलते है जो हवा को प्रदूषित करती है.इस सम्बन्ध में जागरूकता आवश्यक है.आज के समय में इलेक्ट्रोनिक उत्पादों का प्रयोग बंद तो नहीं किया जा सकता लेकिन सावधानी से प्रयोग किया जाना जरूरी है.


सार्वजानिक परिवहन का ज्यादा उपयोग,नियमित रूप से अपनी गाड़ियों की सर्विसिंग,कूलर में हमेशा ताजा पानी रखने,पर्याप्त रोशनदान,पोलिथीन का कम प्रयोग,कमरे के अन्दर अंगीठी या लकड़ियों का नहीं जलाना आदि कई उपाय हैं जिनसे वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है.समय आ गया है कि हम इन उपायों पर ध्यान दें नहीं तो बुरी स्थितियां कभी बताकर नहीं आती हैं.

(चित्र गूगल से साभार)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh