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हवा जरा थम जाओ
बादलो हट जाओ सामने से
आने दो पूनम के चाँद की दूधिया रोशनी
सितारों थोड़ा और चमको
मैं अपने महबूब के
ख़त पढ़ रहा हूँ
चांदनी रात में
माहताब को देखते हुए
खुतूते मुहब्बत पढ़ना
कितना सुकूं देता है
तुम यादों में बसे
या ख्वाबों में
दिल की गहराईयों में
एक अहसास जगा देता है
तुम कितने पास हो
मैं कितने दूर
एक लौ है जो
दोनों में जली हुई
चाँद के आईने में
कभी देखा था तुझी को
बढ़ती जा रही थी चांदनी
सागर में उठ रहा था ज्वार
न कसमें खाई
न वादे किये
एक दूसरे से
गिला शिकवा तक नहीं
तुम्हारा स्नेहिल स्पर्श
आज भी याद है
तारों की छांव में
गीली रेत पर चलते हुए
हौले से छुआ था तुमने
चाँद भी झुक आया था जमीं पर
निखर उठी थी चांदनी
तुम्हारे रक्ताभ कपोलों की
लालिमा ने रंग दिया है
पश्चिमी क्षितिज को
डूबता जा रहा है सूरज
तुमने भी आँखें
बंद कर ली हैं शायद
पहाड़ों के पीछे से
उगता हुआ चन्द्रमा
तुम्हारे माथे की
बिंदिया सा चमक रहा है
तुमने अपने भींगे केश
झटक दिए हैं हौले से
ये छिटकी हुई पानी की बूँदें
जमा हो गई हैं आसमां में
चमकते तारों की शक्ल में
सर्द हवाओं की चुभन
बाहर ले आता है
कल्पना की दुनियाँ से
जहाँ हकीकत के सिवा
कुछ भी तो नहीं है
तुम कितने दूर हो
जहाँ जमीं से आसमां
कभी नहीं मिलता
ये ख्वाब हैं
ख्वाब ही रहने दो.
(चित्र गूगल से साभार)
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