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भला, ये कैसे मैनर्स !!

आपकी सहेली
आपकी सहेली
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कुछ समय पूर्व मैं एक विवाह समारोह में शामिल हुई थी। वहां दोपहर में विभिन्न प्रकार के फल सर्व किये गए। फलों को खाने के लिये साथ में फ्रूट स्टीक दी गई थी। फलों में पपीता, चीकू,सेव और अनार थे। हम लोगों ने फल खाना शुरू किया ही था कि लतिका बोली ‘ हम अनार कैसे खाएंगे ? ‘ मुझे यह प्रश्न समझ में नही आया। मैंने पूछा, ‘ क्यों इसमें क्या मुश्किल है ? जैसे बाकि फल खायेंगे वैसे ही अनार भी खायेंगे।’ लतिका मेरा चेहरा यूं देखने लगी जैसे मैंने कोई अजीबोगरीब बात कह दी हो। लतिका ने कंधे उचकाते हुए जबाब दिया ‘ बाकी फल तो हम फ्रूट स्टीक से खा सकते है। लेकिन अनार के दानों को क्या हाथ से खाएंगे ?’ मैंने पूछा ‘क्यों, हाथ से खाने में क्या परेशानी है ?’ लतिका ने एकदम अजरज से कहा, ‘ बापरे, हाथ से उठाकर ! कोई देखेगा तो क्या कहेगा ? इन्हें मैनर्स ही नही है !’ ‘मैं भारतीय हूं और मुझे अनारदाने हाथ से खाने में कोई संकोच नही है।’ ऐसा कहकर मैंने अनार के दाने हाथ से उठाकर खा लिये। लतिका ने उसकी प्लेट अनारदानों सहित डस्टबीन में डाल दी।
इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। ये कैसे मैनर्स है जो खाद्य का अपमान करना सिखाते है ? लतिका संपन्न, हाई सोसायटी की सभ्य महिला है। इसका अर्थ ये तो नही है कि मैनर्स के नाम पर इस तरह खाद्य पदार्थो की बर्बादी की जाय।
मेरे किचन गार्डन में लगे अरबी के बड़े – बड़े पत्तों को कंचन बड़े गौर से निहार रही थी। उसने मुझ से कहा ‘हमारे यहां अरबी के पत्तों की बड़ी सभी बहुत शौक से खाते है। बाजार में इतने अच्छे पत्ते कहां मिलते है ? ‘मैंने १५-२० पत्ते तोड़कर एक पॉलीथिन बैग में डालकर कंचन को दे दिए। कंचन बहुत खुश हुई। लेकिन जब कंचन अपने घर जाने लगी तो उसने पॉलीथिन मुझे पकड़ाते हुए कहा कि,’हाथ में पॉलीथिन पकड़ कर ले जाना मैनर्स के खिलाफ है। मैं अपने नौकर को भेज दूंगी। प्लीज, तुम पॉलीथिन नौकर को दे देना।’ यह सुनकर मैं एकदम अचंभित हो गई। कंचन खुद ही अरबी के पत्तों की तरफ ललचाई नजरों से देख रही थी। इसलिये मैंने इतने चाव से अरबी के पत्ते उसको दिए और वह है कि झूठी शान में उसे यही छोड़ गई ! भला, ये कैसे मैनर्स है जो इंसान को तरीके से जीने भी नही देते ?

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