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प्रजातंत्र में जनता और विपक्ष का दायित्व

National Issues
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यदि आप अपने चारों ओर देखें तब स्पष्ट हो जायेगा कि विपक्ष अपना दायित्व नहीं निभा रहा है. भारत की जनता इन राजनीतिक दलों के प्रभाव में इतनी अधिक है कि जनता को इस बात को समझने में बहुत समय लगता है कि ये राजनीतिक दल केवल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में व्यस्त रहते हें. राजनीतिक दल समूह जो सत्ता से बाहर है और विपक्ष में है उनका केवल एक ही ध्येय है कि कैसे सत्ता में रहे दल को बदनाम करें और चुनाव में सत्ता में रहे दल को हराकर खुद सत्ता में आ जाएँ और सत्ता की मलाई का आनंद लें. देश के हित्त सम्बन्धी बातें केवल जातीय एवं धर्मों के आधार पर देश को अलग अलग करके वोट बैंक बनाना रह गया है. यह बात निन्दनीय होने के अलावा देश की उन्नति के लिए बाधक है.
विपक्ष  केवल सत्ता धारी दल के कार्यों की त्रुटियाँ गिनाने में व्यस्त रहता है और किसी प्रकार से सत्ता परिवर्तन चाहता है और स्वयं सत्ता हथियाना चाहता है. इसमें जनता, समुदाय, समाज या देशहित का भाव समाहित नहीं रहता है. केवल सत्ता छोड़ो ही ध्यान में रहता है. विपक्ष राष्ट्रीय हित को नज़र अंदाज़ किये रहता है. प्रजातंत्र के मूल में जागरूक विपक्ष की आवश्यकता रहती है जिसके बिना सशक्त प्रजातंत्र की कल्पना असम्भव है. जागरूक विपक्ष  के साथ साथ जनता में भी जागरूकता होना चाहिए’. समुचित जागरूकता का अभाव सफल जनतंत्र के लिए हानिकारक है. हमारे देश की जनता जाति, समुदाय, सम्प्रदाय, धर्मं के नाम पर बटी रहती है जो प्रमुख कारण है उत्तरदायी सत्ता एवं उत्तरदायी विपक्ष  के नहीं होने का.
अगर इन दिनों की राष्ट्रीय राजनीति की बात करें तो आप समाज में बहुत बड़े समूह को केवल सत्ता धारी दल के विरुध बात करते पायेंगे और जो तथ्य तथा प्रमाण दिए जाते हें उनमे प्रमाणिकता की बेहद कमी पायी जाती है.
पत्रकारिता की भूमिका जनतंत्र की समृधि के लिए महत्वपूर्ण होती है. परन्तु निष्पक्ष पत्रकारिता का भारत में अभाव है. आप भारत में पत्रकार अधिकांशतः कांग्रेस पार्टी की ओर रुझान रखते पायेंगे या उनके पक्छ को बहुत ही सुदृढ़ता के साथ रखते पायेंगे. ये पत्रकार इस ओर भी समुचित ध्यान नहीं देते कि जनता का कितना कल्याण हो रहा है.
राजनेता जो प्रश्न उठाते हें संसद और संसद के बाहर उसका मकसद सिर्फ ड्रामेबाजी है. किसी भी बात को इस तरह प्रस्तुत करते हें कि जैसे कोई पहाड़ गिरा हो. पर जहां जनकल्याण की बातें होती हें वहाँ उनका उत्साह संसद की कार्यवाही में लगभग नहीं के बराबर है. अभी हाल में संसद में अविश्वास प्रस्ताव का उदाहरण लें. कांग्रेस, TDP तथा अन्य सहयोगी दलों के सांसद इस अविश्वास प्रस्ताव को पारित करने के हेतु सदन में उपस्थित थे. कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष एवं सांसद राहुल गाँधी ने पूरे बल के साथ देश में असंतुष्टि का विवरण दिया. अविश्वास प्रस्ताव को विफल बनाने के लिए NDA के सांसद भी पूरे बल के साथ सदन में थे. अपने भाषण में राहुल गांधी ने कृषि एवं किसानों की समस्या पर विस्तार से बताया. पर जब बाद में किसानों एवं कृषि समस्यायों से सम्बंधित बिल पर बहस करने और इस बिल को पारित करने की बारी आई तब सदन में विपक्ष के नेता बहुत ही कम थे. इतना ही नहीं NDA के सांसद भी अधिकांशतः अनुपथित थे. यह इस बात का परिचायक है कि राजनेताओं द्वारा जिन समस्यायों को उठाया जाता है उनका ऐसा करने का यह अर्थ नहीं है कि जनता की कठिनाइयों को दूर करने की या उनके समाधान की उनकी कोई मंशा है. उनका अर्थ सिध्ध होता है केवल द्रामेवाज़ी से और मुख्य कारण आने वाले चुनाव में सत्ता बदलने की कोशिश करने की. किसी प्रकार से उन्हें NDA से सत्ता छीन लेने की.
इसका उल्लेख इसलिए किया जा रहा है कि आम नागरिक राजनेताओं की इमानदारी पर ध्यान दे और वोट देते समय इस बात का ख्याल रखे कि किस राजनेता ने जन कल्याण के हित में वास्तविकता में कितना कान किया है. घडियाली आसूं बहाने वालों को सत्ता से बाहर करें और सत्ता में नहीं आने दें. धर्मं और जाति के आधार पर वोट कभी नहीं दें. सारा देश हम सबका है. सभी को साथ लेकर चलें. खासकर उनका ख्याल रखें जो आर्थिक रूप से पिछड़े हें और शिक्षा की कमी से आगे बढ़ने में असमर्थ हें. जागरूक राजनेता और जागरूक जनता प्रजातंत्र की सुदृढ़ता के लिए अनिवार्य है.

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