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अभी हाल ही में जम्मू और कश्मीर के मुख्य मंत्री महबूबा मुफ़्ती का बयान सामने आया जो इस बात की सिफारिश करता है अलगाववादी नेताओं के साथ बात चीत की जाए और कश्मीर मसले का समाधान निकाला जाए. उनका कहना यह है की अलगाववाद एक ख्याल है विचारधारा है और इसे जेल में बंद नहीं किया जा सकता. मैंने किसी भी मुख्य अंग्रेजी समाचार पत्र में इस बयान पर कोई तर्क या आपत्ति की चर्चा नहीं पढ़ी. हिंदी या अन्य भाषा के समाचार पत्रों में तो मैं गंभीर विषयों पर चर्चा की आशा ही नहीं करता क्योंकि वस्तुतः गैर अंग्रेजी समाचार पत्रों का अगर रवैया देखें तो इनका कोई ख़ास अस्तित्व ही नहीं. तोता मैना की कहानी या किसी धार्मिक धारणा को अभिव्यक्ति देना ही ये अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं. यह बात अत्यंत अफ़सोस की है पर सच है.
अब उस विषय को हम क़रीब से देखें जिस की चर्चा महबूबा मुफ़्ती के बयां में है. जहां तक केवल विचारधारा की बात है तो इस बयान से किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती. पर बात सिर्फ अलगाववादी विचारधारा की नहीं है. जहां तक केवल निर्दोष विचारधारा का सम्बन्ध है और यह अति सीमित स्तिथि में है और इसके आधार पर अलगाववाद का प्रचार नहीं किया जाता या अभिव्य क्ति की आज़ादी के नाम पर राष्ट्र को तोड़ने का प्रयास नहीं किया जाता या समाज में शान्ति बहाल के बजाये शान्ति भंग नहीं किया जाता तो विचारधारा को निर्दोष समझा जाएगा. लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यदि इस विचारधारा के प्रचार के लिए या असामाजिक तत्वों को प्रोत्साहन के लिए अवैध धनराशि जमा करने के लिए या आतंकी संगठनों के साथ हाथ मिलाने के लिए कोई कार्य किया जाए तो इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह कठोर दुष्प्रयोग है और इस अधिकार के दमन के लिए सरकार द्वारा उठाए गए प्रबंधों को अनिवार्य समझा जाएगा. भारत में यदि मुसलमानो की बात करें तो जैसे यह हिन्दुओं का देश है उसी तरह यह अन्य धर्मों के अनुयायिओं का भी देश है और सभी को इस देश की अखंडता और सम्प्रभुता को बनाये रखने का समान अधिकार है और इसके लिए सभी को एकजुट होकर आगे आने की ज़रुरत है. कश्मीर के आदरणीय वर्त्तमान मुख्य मंत्री के बयान को सही ढंग से लिया जाना चाहिए क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश को तोड़ने या देश में आतंकी संगठनों के साथ सहयोग अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीं है. संविधान हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है पर साथ ही यह शर्त भी है शान्ति भंग इसके लिए करना जुर्म है.
पिछले कई दिनों से कश्मीर में आतंकवाद का घनघोर प्रकोप है. इस आतंकवाद का प्रोत्साहन अलगाववादी नेता गण देते रहे हैं इसकी पुष्टि राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी ने की है. इस एजेंसी के पास यह भी पुष्टिकरण है इन अलगाववादी नेताओं के पास बहुत चल और अचल संपत्ति है जो पाकिस्तान द्वारा दिए गए पैसों से है. ये नेतागण इन दिनों दिल्ली के मशहूर वकीलों की तलाश में हैं जो हर अवांछित कारनामों के लिए क़ानून के शिकंजे से इन्हें मुक्ति दिला सकें. यहां यह बताने की ज़रुरत नहीं है दिली में कई ऐसे लालची वकील मिल जाएंगे जो देश की अखंडता को चोट पहुंचाकर इन अलगाववादियों के बचाव में संलग्न रहेंगे. आखिरकार दिल्ली वही शहर है जहां “अफ़ज़ल हम शर्मिन्दा हैं तेरे क़ातिल अभी ज़िंदा हैं” नारा खुले आम लगाने वाले सरकारी मदद से पढ़ाई कर रहे हैं और मस्त हैं. हम भारत के लोगों के लिए यह बहुत ही शर्म की बात है. ऊपर से राजनितिक दलों का इनको साथ है.
हर भारतीय का यह अधिकार और कर्त्तव्य है हम सब एक जुट होकर अलगाववादियों के खिलाफ ठोस क़दम पर विचार करें और सरकार जो केंद्रीय है उसको अलगाववाद को जड़ से दूर करने में मदद दे साथ ही सरकार से यह मांग करें अलगाववाद से निपटने के लिए कठोर संभव क़दम ले.
अलगाववाद को कुचलना बहुत ज़रूरी है. केंद्रीय सरकार को हमारा समर्थन चाहिए. सरकार अगर ठोस क़दम उठाती है और इससे ऐसा आभास हो क़दम बहुत ही ठोस है तो मानवाधिकार जैसे प्रश्न को दरकिनार कर दिया जाना चाहिए. देश द्रोहियों के लिए सौहार्दपूर्ण व्यवहार अवांछित है. यह मेरी आशा है भारत वासी एक जुट होकर अलगाववाद का मुक़ाबला करें और इसके लिए हमारी केंद्रीय सरकार का पूरा समथर्न करें. विपक्ष के दल शोर करेंगे. समाजवादी पार्टी तथा कांग्रेस की दोस्ती सरकार के ठोस क़दम पर आवाज़ उठाएंगी हमारा कर्त्तव्य है इन राजनीतिक दलों का सफाया करना. देश में अलगाववाद तथा कश्मीर की गंभीर समस्या को अगर देखें और विचार करें तो साफ़ हो जाएगा कांग्रेस ने कितना नुक्सान किया है देश का. अभी हाल में संसद में समाजवादी पार्टी के सांसद ने बयान दिया मुसलमानों को कहीं भी नमाज़ पढ़ने की आज़ादी है चाहे एयर पोर्ट पर सार्वजनिक स्थल ही क्यों न हो. अगर सरकार इस आज़ादी को लेगी तो हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान इसे गंभीरता से लेगा. इस समाजवादी पार्टी के सांसद के बयान में छुपी एक धमकी थी. हमारी किसी भी गैरज़िम्मेदाराना हरकतों पर रोक लगाने की कोशिश न करो. पाकिस्तान हमारी मदद के लिए आ जाएगा. मैं पूछता हूँ क्या आपमें इतनी हिम्मत है इस प्रकार के राजनीतिक नेताओं को संसद से हटाने की और इस प्रकार के राजनीतिक दलों का सफाया करने का. मुझे अखिलेश यादव की नासमझी से शिकायत नहीं है. नहीं उनके सहयोगी रामगोपाल यादव की सूझ बूझ की मैं क़द्र करता हूँ. खेद इस बात का है मुलायम सिंह यादव भी इस दूषित मनोवृत्ति को रोक नहीं पाए.
लोग कहते हैं हमें भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आज़ादी है. ऐसा यह भी साधारणतया समझ लिया जाता है अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कोई भी रोक नहीं लगा सकता. लोग इसके लिए उच्तम न्यायालय जाने को तैयार हैं. पर अभिव्यक्ति की आज़ादी का तात्पर्य यह नहीं है इस आज़ादी का दुरूपयोग हो या लोग सशस्त्र इकठ्ठा होकर समाज की शान्ति भंग करें. मैं पाठकों का ध्यान संविधान के अनुच्छेद १९ की ओर ले जाना चाहता हूँ. अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगाया जा सकता है और केंद्रीय सरकार कश्मीर में शान्ति सुरक्षा के लिए ऐसा कभी भी कर सकती है. सिर्फ कश्मीर में ही नहीं भारत के किसी भी कोने में इस स्वतंत्रता पर लगाम लगाया जा सकता है.
आशा की जाती है देशवासी एकजुट होंगे और कश्मीर में शांति बहाल करेंगे. जय हिन्द.
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