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कासगंज की सांप्रदायिक हिंसा भाईचारे पर गहरी चोट

National Issues
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जब सारा भारत 26 जनवरी को भारतीय संविधान की उद्घोषणा एवं संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र की स्थापना की 69वीं वर्षगांठ के उल्लास में डूबा था, तब UP के कासगंज में मातम की स्तिथि पैदा हुई, जिसका घाव मारे गए युवक के माता पिता समेत सगे सम्बन्धियों और उनके मित्रों को चुभता रहेगा. राष्ट्रीय चेतना पर यह बहुत बड़ा प्रहार है. ऐसी घटनाओं से हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता की सीख भी मिलती प्रतीत नहीं होती. इसका एक ज़बरदस्त कारण है कि हम साम्प्रदायिकता एवं इससे सम्बंधित जान-माल की हानि के आदी हो गए हैं. हर दंगे को राजनीति के चश्मे से देखकर हमें ऐसी घटनाओं के दुष्प्रभाव की गहराई में जाने का रास्ता भी नहीं दिखता.


kasganj


इसके पहले हम कासगंज की भौगोलिक स्तिथि की ओर ध्यान दें. कासगंज भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में एक नगर है. इसी नाम के ज़िले का यह प्रधान केंद्र भी है. इसका अर्थ यह है कि कासगंज नगर कासगंज ज़िले का मुख्यालय है. यदि आबादी के लिहाज़ से देखें तो यहां 66% हिंदू और 32% मुसलमान है. बाकी अन्य समुदाय की श्रेणी में हैं. जो इस नगर की स्थिति है उसके आधार पर इसकी स्थिति विशिष्‍ट कही जाएगी, क्योंकि यह सड़क एवं रेल नेटवर्क की सहायता से अन्य भागों से जुड़ा है. कासगंज नगर UP के हाईवे 33 पर है, जो आगरा-बदायूं-बरेली को जोड़ती है. Grandtrunk रोड से इसके दूरी लगभग 30 किलोमीटर है.


युवक चन्दन गुप्ता की जान केवल इसलिए गयी कि वह 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को भारतीय तिरंगे को फहराता हुआ मुस्लिम बहुल क्षेत्र से गुज़र रहा था. इस नवयुवक के दाह संस्कार के बाद लोगों की भीड़ ने पांच बसों, तीन दुकानों को आग के हवाले कर क्षति पहुँचाई, साथ ही एक स्थानीय निवासी के फार्महाउस का भी तोड़फोड़ की.


मैं स्थानीय पुलिस या प्रशासन के काम को दोषी ठहराने को इस समय समयानुकूल नहीं समझता. अभी जांच चल रही है. संदिग्‍ध लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है. इतना कहना तर्क संगत होगा कि कुछ पार्टियों के दुष्प्रभाव के कारण UP के पुलिस कर्मी निष्पक्षता से अपना कर्त्तव्य पालन नहीं कर पाते थे. यदि योगी सरकार इन पुलिस कर्मियों पर निगरानी नहीं रखेगी, तो स्वभावतः हिन्दू समुदाय के लिए यह घातक होगा.


यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि हिन्दू और मुस्लिम वर्ग में किसी प्रकार का प्रशासनिक भेदभाव नहीं किया जाए. झगड़े के कारणों का अभी सही विश्लेषण नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभी सरकारी जांच चल रही है. इतना अवश्य कहा जा सकता है कि भारत के तिरंगे को फहराने एवं राष्ट्रगान गाने के लिए किसी पुलिस कर्मी या प्रशासनिक अधिकारी के आदेश की आवश्यकता नहीं है.


जब भी कोई समूह राष्ट्रीय झंडे को लेकर निकलता है तो किसी भी धर्म के लोगों की अनुमति की ज़रूरत नहीं है. यह हिंदू विरोधी दलों के लोगों ने मुसलमानों का वोट लेने के लिए किया है. किसी तरह से हिंदू समुदाय को नीचा करो और अल्पसंख्यकों का वोट अपने हिस्से में लो.


कहते हैं कि इस नवयुवक की जान इस कारण गयी कि नवयुवक अपने सहयोगियों के साथ मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र से गुजरने का दुस्साहस कर रहा था और मुसलमानों से वन्दे मातरम् गान की अपेक्षा कर रहा था. स्पष्ट है कि ऐसे दलों के समर्थकों को यह बुरी लगी कि भारत की सीमा के अन्दर वन्दे मातरम् गान की अपेक्षा की जा रही है.


ऐसे वाक्यों से हिंदू समुदाय के लिए ज़बरदस्त सीख है. आप हिंदुत्व का सही पक्ष रखें और हिंदू-मुसलमान की अटूट एकता पर बल दें. इसके लिए तत्परता से ऐसी पार्टियों का बहिष्कार करें. मुस्लिम समुदाय को बहकाने वाली सभी राज्यों में राजनीतिक दल हैं. कर्नाटक की हाल की घटना से अगर आप परिचित नहीं हैं, तो हम इतना बता दें कि अभी जो कांग्रेस की सरकार है उस सरकार ने यह फैसला लिया है कि अल्पसंख्यकों के युवाओं के नाम से जो केस दर्ज हैं, उसे वापस लिया जाएगा.


ज़ाहिर है कि कर्नाटक की कांग्रेस की सरकार ने यह फैसला अभी होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर लिया है. तुष्टिकरण की राजनीति से हमें दूर रहना होगा और इसके लिए उन सभी राजनीतिक दलों को चुनाव में वोट नहीं देना होगा. आइये यह संकल्प लें कि भारत को विकास पर ले जाने के लिए सभी को साथ लेकर चलेंगे और तुष्टिकरण की राजनीति को अपने देश और समाज से निकालने के लिए सर्वदा तत्पर रहेंगे.

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