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पंजाब नेशनल बैंक तथा अन्य सरकारी बैंक के काले कारनामे

National Issues
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अब बात सामने आ रही है. राष्ट्रीयकरण के माध्यम से बैंकों का नियंत्रण अपने हाथों लेकर तत्कालीन सरकार ने जो अपारदर्शिता बैंक के कामों में घाटे को छुपाने की तरकीब निकाली उसे किसी प्रकार से नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता. घोटालों के नाम पर बजट के घाटे को छिपाने का और भारत की जनता को आसानी से बेवकूफ बनाने का यह बहुत सहल ऊपाय कांग्रेस पार्टी ने अपनी केंद्रीय सरकार को बचाने के लिए किया. कहते हें कि बड़े अर्थशास्त्री के समूह से इसबात पर चर्चा होती रही और उनके मार्गदर्शन से ही कांग्रेस की सरकारें धोखाधड़ी को छुपाने में सफल रही. साथ में यह भी समझना होगा कि इन घोटालों में कांग्रेस के राजनेताओं का गहरा सहयोग रहा है.
प्रश्न यह उठता है कि बीजेपी की वर्त्तमान केंदीय सरकार के समय ही इन घोटालों का पर्दाफाश क्यों और कैसे हो रहा है. नीरव मोदी आभूषणों तथा बहुमूल्य हीरा का व्यापार केंद्र में बीजेपी सरकार के आने से कई सालों पूर्व करता रहा है. नीरव मोदी सरकारी बैंकों से क़र्ज़ भी बहुत पहले से लेता रहा है. अब जब घोटालों की पोल खुली तब कांगेस इस गंभीर समस्या पर विचार करने के स्थान पर कांग्रेस की सरकार के कार्य काल में आरम्भ किये घोटालों को बीजेपी के कार्यकाल में प्रकाश में आये घोटालों के लिए बीजेपी को बदनाम कर रही है. इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि वर्त्तमान रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ़ ब्यान दिया है कि नीरव मोदी के व्यापार से कांग्रेस के वरिष्ट राजनेता अभिषेक मनु सिंघवी परिवार भी सहयोगी के रूप में लाभान्वित होता रहा है. इस प्रकार एक नाम सामने आया है पता नहीं और कितने कांग्रेस के नेता ऐसे घोटालों से लाभ उठाते रहे हें. अफ़सोस है कि अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह जब भारत के प्रधान मंत्री रहे उनके कार्य काल में ही नीरव मोदी व्यापार के नाम पर देश को लूटता रहा और सरकार सरकारी बैंकों के कार्य की सराहना करती रही. अभी तक मैंने केवल ZEE NEWS की ओर से ही इन घोटालों का सक्रिय विश्लेषण यथासंभव किया जाना देखा है. देश के पत्रकार चाहे किसी भी भाषा में पत्रकारिता करते हों इस समस्या का विश्लेषण करने से कतरा रहे हें. ज़्यादातर पत्रकार कांग्रेस पार्टी की सरकारों पर अपनी पत्रकारिता चलाने के लिए आश्रित रहे हें. इस कारण पत्रकारिता अपने दायित्व का पालन करने में असमर्थ रही है. चाहे पुरस्कार मिलने की बात हो या किसी और सम्मान पाने की लालसा हो पत्रकार कांग्रेस की सरकार पर दया की भीख की आशा में समस्या की सच्चाई खोजने में उत्सुकता का प्रदर्शन नहीं करता.
यह हमारी बदकिस्मती रही है कि हम प्रजातंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारते रहते हें.
अभी फिर एक मामला घोटालों का सामने आया है. यह घोटाला नीरव मोदी से जुड़ा नहीं है. यह घोटाला विक्रम कोठारी से सम्बंधित है. विक्रम कोठारी ROTOMAC नामक कंपनी का मालिक है. इन्होने भी सरकारी बैंकों से कर्जा लिया है और चुकाने में असमर्थ हें. एक अच्छी बात यह है कि विक्रम कोठारी देश छोड़कर भागे नहीं हें. यहाँ अभी तक इसका खुलासा नहीं हुआ है कि UP के राजनेताओं को कितना लाभ इस ROTOMAC से हुआ है. मुझे आश्चर्य नहीं होगा कि कई UP के राजनेता का वरद हस्त कोठारी पर होगा और इन कारनामों को करने में उन्हें राजनीतिक सहयोग प्राप्त होता होगा.
हम भारत की अर्थ व्यवस्था पर ध्यान दें तो समझने में देर नहीं होगी कि इस देश में समाजवादी और वाम पंथीयों का जोर रहा है और कांग्रेस की सरकारों ने इन वामपंथी विचारों के सहारे देश को लूटने में सफल रही हें. प्रश्न उठाया जाता रहा है कि क्या सरकारी बैंकों के कारण ही ऐसे घोटाले होते रहे हें. यह तो साफ़ है कि नौकरशाही सरकारी बैंकों में उसी तरह है जैसे कि सरकारी विभागों ओर दफ्तरों में होता है. निष्क्रिय तथा भ्रष्ट नौकरशाही देश को बहुत चोट पहुंचाती है. क्या अगर सभी सरकारी बैंकों को निजी बैंकों की श्रेणी में लायें तो घोटाला बंद होगा. यह प्रश्न विचारणीय है. साथ ही नौकरशाही में किस प्रकार सुधार आये कि जनता की सेवा में इनका ध्यान लगे. आवश्यकता इस बात की है कि जनता को भी जागरूक रखना होगा.

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