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इसी सप्ताह सोमवार को जब सफल राजनेता पी चिदाम्बरम का चालबाज़ तथा सत्ता की आड़ में पलने वाला बेटा, कार्ति चिदाम्बरम लन्दन से शान के साथ चेन्नई एयरपोर्ट पहुंचा तब केन्द्रोय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का प्रतिनिधि मंडल उनकी आग्वाणी में उन्हें क़ैद कर दिल्ली ले आया और दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में उनकी पेशी कराई गयी. यह बात कार्ति को या अभिभावक कांग्रेस पार्टी के नेताओं को पसंद नहीं आयी. छोटा चिदाम्बरम अभिमान के कारण सीबीआई प्रतिनिधियों के प्रश्नों का उत्तर देने से इनकार करता रहा. कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने एक जुट होकर इसका आह्वाहन किया कि यह सब बीजेपी सरकार की साज़िश है भला कोई व्यक्ति जो कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता का पुत्र हो उसे किस प्रकार मनी लौन्ड़ेरिंग या आय को छिपाने के जुर्म में सीबीआई गिरफ्तार पूछ ताछ के लिए करने का दुस्साहस कर सकती है. कुछ इसी सीबीआई के दुस्साहस के सन्दर्भ में वक्तव्य कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने बड़ी उत्तेजना के साथ दिया. स्पष्ट है कि इस प्रवक्ता के वक्तव्य से कांग्रेस पार्टी की झुंझलाहट सामने आ रही थी. जब लोग चोरी करते हें उस वक्त उनका यह मत होता है कि ऐसा करना उनका अधिकार है. और जब पकड़े जाते है तब उनका कहना होता है कि जांच अधिकारी उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रहे हें.
यह मैं मानता हूँ कि पुलिस कर्मियाँ की भारत में अत्यंत कमी है. सीबीआई में भी जांच कामों के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं है. फिर यह भी सत्य है कि राजनेताओं तथा उनके सगे सम्बन्धियों के अपराधों को नज़रंदाज़ कर दिए जाने की हमारी आदत बन गयी है. पुलिस कर्मियों द्वारा भ्रष्टाचार तो विदित है.
पुलिस के भ्रष्टाचार के लिए हम सभी ज़िम्मेदार हें. लेकिन इसका सर्वाधिक दोष राजनीतिक दलों को जाता है. 1947 में मिली स्वतंत्रता के बाद हमने भ्रस्टाचार को रोकने का प्रयास नहीं किया. जब एक राजनीतिक दल की सरकार होती है और कोई विपक्ष का नेता या खुद या अपने सगे सम्बन्धियों अथवा मित्रों को ग़लत तरीके से धन उपार्जन के अभियोग में जांच के लिए पकड़ा जाता है तो विपक्ष इस के लिए सत्ताधारी दल पर कई तरह के विपक्ष विरोधी इल्जामों को गिनाने लगते हें.
कार्ति चिदाम्बरम को सीबीआई ने हिरासत में इसलिए लिया है ताकि उनसे उनपर लगे हुए अभियागों के सम्बन्ध में पूछ ताछ किया जाये. जो मुख्य अभियोग है उसका संक्षेप में वर्णन करना इस समस्या को आपके सामने रखने की प्रक्रिया की परिपूर्णता के निमित्त आवश्यक है. 2007 में UPA की कांग्रेस की अगुआई की सरकार थी. पी चिदाम्बरम उस समय भारत सरकार में वित्त मंत्री थे. आपको यह भी बता दे कि 2004 में चुनाव के बाद मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री बने और सोनिया गाँधी UPA की सर्वेसर्वा यानि अध्यक्ष थी. दर असल में मनमोहन सिंह तो सिर्फ दिखावे के प्रधान मंत्री थे. सारा काम सोनिया गाँधी के नेत्रित्व में होता था और कांग्रेस के नेता अहमद पटेल सोनिया गाँधी के सचिव थे. सच्चाई यह है कि सरकारी काम काज मनमोहन सिंह के नाम पर अहमद पटेल सोनिया गाँधी के सांठ गांठ के साथ करते थे. सोनिया गाँधी तो केवल मूक व्यक्तित्व थी जिसे अहमद पटेल जैसे चलाये. बस इस बात पर ध्यान रखा जाता था कि नेहरु-गाँधी परिवार के हाथों में ही सत्ता हो.
हां तो जब पी चिदाम्बरम 2007 में भारत के वित्त मंत्री थे तो उनके अंतर्गत FIPB (विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड) काम करता था. इस बोर्ड की ज़िम्मेदारी है कि विदेशी निवेश पर नज़र रखे और इसके नियमितता के लिए इस बोर्ड का गठन किया गया था. उन दिनों इन्द्राणी और पीटर मुखर्जी INX मीडिया में विदेशी निवेश की मंज़ूरी के लिए वित्त मंत्रालय(FIPB) को आवेदन भेजा. वित्त मंत्रालय ने उन्हें लगभग 4 करोड़ विदेशी पूँजी की स्वीकृति दी. पर उस स्वीकृति के आधार पर इन दोनों ने विदेशी निवेश 305 करोड़ प्राप्त किया. यहाँ ध्यान देना है कि स्वीकृति प्राप्त हुई रक़म से कहीं अधिक रक़म प्राप्त कर इन्होने FIPB कों इसकी सूचना नहीं दी. जब FIPB को इसकी जानकारी हुई और छानबीन की प्रक्रिया होने लगी तब इन्द्राणी और पीटर मुखर्जी ने पी चिदाम्बरम के बेटे कार्ति चिदाम्बरम का दामन थामना आवश्यक समझा क्योंकि पापा चिदाम्बरम उन दिनों वित्त मंत्री थे और कार्ति चिदाम्बरम के लिए FIPB से नयी स्वीकृति लेना मुश्किल नहीं था. इस काम के लिए कार्ति चिदाम्बरम को 3.5 करोड़ कि रकम INX मीडिया ने कमीशन के रूप में दिया. इन्द्राणी और पीटर मुखर्जी ने जज के सामने लिखित रूप से इसे स्वीकार किया है कि दोनों पी चिदाम्बरम के कार्यालय में उनसे मिले और यह तय हुआ कि INX मीडिया कार्ति चिदाम्बरम की सेवा के लिए उपयुक्त राशि देकर उनके कल्याण का ध्यान रखें. 3.5 करोड़ कमीशन की प्राप्ति कार्ति चिदाम्बरम ने किसी और कंपनी के नाम से की और इस सम्बन्ध में मनी लौन्ड़ेरिंग तथा आयकर नहीं देने के सम्बन्ध में उनसे पूछ ताछ सीबीआई कर रही है. आप स्वयं सोचिये कि इस मामले की विधिवत जांच हो या नहीं. यदि कांग्रेस पार्टी की माने तो बीजेपी की सरकार विपक्ष को डराने की बात कर रही है और कार्ति चिदाम्बरम को हिरासत में लिए जाने को लेकर कांग्रेस पार्टी का यह भी कहना है कि बीजेपी ऐसी हरकतों से कांग्रेस पार्टी की आवाज़ दबा नहीं सकती.
इस सम्बन्ध में आप ही सोचिये कि इन अनियमितताओं की जांच होनी चाहिए या नहीं और जो दोषी हें उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए की नहीं. वोट देते समय कांग्रेस पार्टी की घिनौनी करतूतों को ध्यान में रखना अति आवश्यक है.
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