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प्रजातंत्र – अधिकार और दायित्व

National Issues
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आप हमेशा यह सुनेंगे कि हम प्रजातंत्र में रहते हें और इसके लिए भारतीय संविधान हमे अभ्व्यक्ति की आज़ादी देता है. प्रजातंत्र के अंतर्गत हमें इस बात की आज़ादी है कि अपनी विचारधारा को एक दुसरे को बताएं और अपने विचारों के पुष्टि के लिए तर्क वितर्क करें.
प्रजातंत्र ऐसी व्यवस्था है जिसमे सरकार का गठन जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से होता है. प्रजातंत्र का दूसरा नाम लोकतंत्र है – जिसका अर्थ है आम जनता द्वारा संचालित शाशन व्यवस्था. ऐसी व्यवस्था के अंतर्गत नागरिक अधिकार तथा सकारी व्यवस्था चलने की प्रणाली की दिशा और निर्देश संविधान में समाहित है.
हम कौन सा धर्म मानते हें कहाँ पूजा अर्चना करते हें इस में कोई रोक टोक नहीं है. प्रजातन्त्रनात्मक प्रणाली की सरकार इस कारण सभी धर्मों को बराबर समझती है. जब सभी धर्म एक समान सरकारी मान्यता रखते हें तो इस प्रकार की सरकारी व्यवस्था धर्म निरपेक्ष समझी जाती है. इस प्रकार भारत का संविधान धर्म निरपेक्ष है. यहाँ यह भी साफ़ हो जाना चाहिए कि प्रजातंत्र के अंतर्गत हमे अपनी ज़िन्दगी स्वतन्त्रता के साथ भारतीय संविधान के दायरे में रहने की आज़ादी है. यहाँ उल्लेखनीय है कि हम स्वतंत्र हें अपना व्यवसाय चुनने में.
अभिव्यक्ति धर्म चयन व्यवसाय तथा अन्य सम्बंधित लोकतंत्रात्मक स्वतन्त्रता के साथ साथ हमारा दायित्व या कहें कि कर्त्तव्य भी बनता है और यह भी संवैधानिक रूपरेखा में समाहित है. हमे कोई भी काम नहीं करना है जिससे समाज में शान्ति भंग होने की संभावना है. इसका साफ़ मतलब यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हमें अभद्र भाषा प्रयोग करने की इजाज़त नहीं देती.
बहुत अफ़सोस की बात है कि पिछले कई वर्षों से समाज में अभद्रता एवं क्रूरता का प्रवेश हो गया है. भारतीय जनता एक दुसरे के प्रति अभी भी आपसी सद्भाव तथा आदर का भाव रखती है, स्पष्ट रूप से क्रूरता एवं अभद्रता का अनुभव और अवलोकन हम राजनीतिक गलियारों में करते हें. राजनीतिक द्लों की विचारधारा का भेदभाव एक दुसरे के प्रति अभद्रता के साथ दर्शाया जाता है. हम राजनेताओं से इस बात की आशा करते हें कि एक दूसरे के साथ विचारधारा के फर्क का एहसास अभद्र भाषा का इस्तेमाल से न करें. पूरा देश इस प्रक्रिया से असमंजस में है और इसकी भर्त्सना करता है जब एक राजनीतिक दल या समूह दूसरे राजनीतिक दल के नेताओं के लिए अभद्र भाषा या अपशब्द का प्रयोग करता है. चाहे अभद्रता देश के अंदर अपने भाषणों वक्तब्यों या प्रेस को दिए जाने वाले विवरणों में हो या देश से बाहर NRI समुदाय को संबोधित करने में देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी के बारे में अनुचित, असभ्य अभद्र और ग़ैर अनुशाषित शब्दों का प्रयोग किया जाए यह अशोभनीय है और देश किसी कीमत पर ऐसे व्यवहार का सहन नहीं कर पायेगा. ऐसे बचकाना बोल चाल से शिष्ट्ता का हनन होता है और देश कि मर्यादा एवं गरिमा को ठेस पहुँचता है.
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता जब देश की मर्यादा, देश के सम्मान के विपरीत हो तब इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग समझा जायेगा और संविधान इस प्रकार की स्वतन्त्रता हमे नहीं प्रदान करता है.
आपने यह भी पाया होगा कि अभिव्यक्ति की संवैधानिक स्वतन्त्रता के नाम पर लोग धार्मिक असंतुलन का वातावरण भी देश में फैलाना चाहते हें. इससे किसी को भी एतराज़ नहीं है कि भारत में अपना धर्म चुनने और अपने धर्म के मुताबिक व्यक्तिगत जीवन में इसका आचरण करने कि आज़ादी है. पर धार्मिक आचरण किसी भी अन्य व्यक्ति के जीवन में कठिनाई पैदा करना या संविधान के अंतर्गत जीवन निर्वाह नहीं करने देना संविधान के अनुकूल नहीं है. जहां संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, अपने जीवन में धर्माचार की स्वतंत्रता देता है वहाँ संविधान हम सभी से नागरिक कर्तव्यों और सम्बन्धित दायित्वों के पालन की भी अपेक्षा करता है.
यह हमारी सबसे अपेक्षा है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर किसी भी दूसरे का अपमान न करें. जब कोई भी राजनीतिक नेता विदेश जाकर अपने देश की मर्यादा और गरिमा को ठेस पहुँचाये उस नेता को इस आपत्तिजनक स्तिथि से अवगत कराएं और यदि जिद करे तब उसे या उसके राजनीतिक दल को तथा उसके सहयोगी दलों को भी वोट न दें. यदि आप अपने देश की गरिमा और मर्यादा को ऐसे नेताओं से बचाना चाहते हें तब निदान मात्र उन्हें वोट न देकर सत्ता से उन्हें दूर रखने में ही है.

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