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भारत के प्रत्येक नागरिक के मन में ऐसे विचार उत्पन्न होते हें कि हमारा देश और हमारी आर्थिक उन्नति इस प्रकार दयनीय क्यों है. हमारे आम नागरिक को पीने के हेतु साफ़ और कीटाणु रहित पानी भी उपलब्ध नहीं है. अभी मैं हाल ही में ZEENEWS के माध्यम से त्रिपुरा राज्य के लैलक गाँव के निवासियों के जीवन यापण की एक झाँकी देख रहा था. इसे देखकर मुझे ऐसा लगा कि मैं अतीत के किसी पुरातन गाँव की तस्वीर देख रहा हूँ. और यह गाँव त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से सिर्फ 60 km की दूरी पर स्थित है. इस राज्य में पिछले 25 वर्षों से माणिक सरकार मुख्य मंत्री हें. माणिक सरकार कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सिस्ट) हें. इसके दौरान केंद्र दिल्ली में मुख्य रूप से बहुधा कांग्रेस पार्टी की सरकार रही जो महात्मा गांधी का हवाला देते हुए सच्चाई और ईमानदारी के साथ ग़रीबों तथा पिछड़े वर्गों के लिए सेवा में रत सरकार के रूप में राजनीतिक खेल खेलती रही. किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि ग़रीब के लिए कम से कम पीने के लिए स्वच्छ पानी का प्रबंध किया जाए, ताकि गंदे पानी को पीने, स्वास्थ्यकर सुविधाओं के अभाव में वे पेचिश का शिकार न हों और अपनी जान खो बैठें.
त्रिपुरा के इस गाँव के साथ साथ और ऐसे कई गाँव, क़स्बा, शहरी क्षेत्र है जहां साफ़ पानी लोगों को पीने के लिए नहीं मिलता है. भारत की पूरी आबादी के अधिकांशतः लोगों को शौच के लिए खुले खेत, पहाड़ियों, घरों के पिछवाड़े में जाना पड़ता है जो स्वास्थ के लिए हानीकारक होने के साथ ही बहुत ही असुरक्षित वातावरण पैदा करता है. भारतीय गरीब महिलाओं बच्चों एवं छोटी लड़कियों को गंदे नाले से या नदी से, तालाब से घर के लिए पानी लाना पड़ता है. कई गाँव ऐसे हें जहां सार्वजनिक उपयोग के लिए पानी के कूएँ तो अवश्य हें पर अधिकांश लोगों को शौचालय की सुविधा प्राप्त नहीं है. यह प्रसन्नता का विषय है कि बीजेपी की सरकार इस ओर आवश्यक कदम उठा चुकी है और श्री नरेन्द्र मोदी के नेत्रित्व में साफ़ पानी, शौचालय, और नदियों की सफाई का अभियान जोर शोर से चल पड़ा है. पिछले दिनों केंद्र तथा राज्य की कांग्रेस की सरकारों ने जन समुदाय के हित में स्वास्थ्यकारी सुविधाओं को मुहैया कराने के संबध में ठोस प्रयास किया ही नहीं. चुनाव के समय गरीबों को डेढ़ किलो चावल और देशी शराब की बोतलें देकर वोट लेने के काम तक ही कांग्रेस पार्टी ने जन हित कामों को सीमित रखा. साथ ही जनसमुदाय को धर्म, संप्रदाय, जाति के नाम से अलग थलग रखने में कांग्रेस पार्टी की नीति सफल रही. अन्य स्थानीय एवं प्रादेशिक राजनीतिक
दलों का भी वही ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैया रहा. धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, जनता बँटती रही और राजनेता अपनी रोटियां सेंकते रहे. कम्युनिस्ट पार्टी भी गरीबों के वोट से पलती रही पर उनके विकास की ओर सशक्त प्रयास नहीं हुआ. UP की समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी इसी जन छलावे से अपनी राजनीति करती रही है. बिहार प्रदेश में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल इसी प्रकार के छलावे से सत्ता में रही. पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस हिन्दुओं को नीचा कर और मुसलमानों को ऊपर उठाकर सत्ता चलाती रही है. तृणमूल कांग्रेस बँगला देश से भाग कर आये मुसलमानों को सुविधाएं मुहैया कराकर छलावे से उन्हें स्थानीय घोषित कराने में प्रयासरत रहती है और उनका अवैध्य वोट अपने हिस्से में लेकर शाशन करती रही है.
इस प्रकार की भारत की प्रगति में विरोध डालकर सत्ता में आनेवाली पार्टियाँ इसके लिए ज़िम्मेदार हें कि भारत अभी भी पिछड़ा देश है. कोई भी देश प्रगति तथा उन्नति नहीं कर सकता जब राजनेता मूलतः केवल अपनी सत्ता बनाए रखने तक ही अपनी नीति को सीमित रखना चाहते है. आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी देशवासी एक जुट हो जाएँ, भारत की प्रगति तथा उन्नति पर ध्यान दे, भारत को धर्मं या जाति के नाम पर बांटने वाली पार्टियों को अपना नोट कभी न दे. हमारा धर्म हिंदू या इस्लाम हो सकता है पर हम सभी भारत की संतान है और इस देश की रक्षा करना हमारा सबसे बड़ा कर्त्तव्य है. हमारी संस्कृति भारतीय संस्कृति है जो हिंदुत्व है पर हमारा धर्म अलग हो सकता है. हम संस्कृति को धर्मं से अलग रखे और भारतीय होकर एक साथ काम करें.
कांग्रेस पार्टी हमे कभी भी एक साथ जोड़ने का प्रयास नहीं की. इसी कारण से हमारा विकास रुका पड़ा है. इसपर विचार करना अतिआवश्यक है कि आर्थिक प्रगति के सभी संकेतकों के अनुसार हम इतने पीछे क्यों हें. हमारे भारत के लोग पुरुषार्थी हें, उद्धमी हें. शिक्षा तंत्र की कोई कमी नहीं है फिर भी हम इतने गरीब हें. इसका मुख्य कारण शाशन प्रणाली है और राजनीतिक दलों का हमारे साथ दुरुपयोग है. हम अगले ब्लॉग में आर्थिक संकेतकों, निदेशकों और सूचकांकों की बात करेंगे जिससे आपलोगों को देश की आर्थिक स्तिथि की दयनीय दशा का बेहतर अंदाजा मिल सकेगा.
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