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भारतीय किसानों की निरंतर आर्थिक दुर्दशा

National Issues
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आप परीशान हो गए होंगे कि स्वतंत्र होने के इतने अरसे बाद भी भारत के किसानों की आत्म हत्या की दुखद ख़बरें आती रहती हें. इसके साथ भी आपको इस बात का भी दुःख होता होगा कि भारत में इतनी ग़रीबी क्यों है. आपकी इस सोच की सराहना करना अनिवार्य है. प्रश्न यह उठता है कि हमारी शुभचिंतक सरकारों की ओर से आंसू बहाने तथा हर चुनाव के पहले अर्थ व्यवस्था को सबल करने के वादों के बावजूद ऐसी स्तिथि किस कारण बनी हुई है.
भारत के लोग मिहनत करने वाले हें. दिन रात परिश्रम करने को तत्पर हें. किसी से अनुचित मदद लेना पसंद नहीं करते हें. स्वाबलंबी हें. सरकारी व्यवस्था में आस्था रखते हैं. पर दुर्भाग्य है कि सरकारी व्यवस्था उनकी सही कठिनाइयों या सही ढंग से खेती करने की समस्यायों का समाधान करने में असफल रही है.
आपको याद होगा कि जब केंद्र में और अधिकाँश राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी और श्रीमती इन्दिरा गाँधी प्रधान मंत्री थीं उन दिनों राजनीतिक नारा कांगेस की थी “ग़रीबी हटाओ”. और कांग्रस की तत्परता के रहते हुए भी देश कि ग़रीबी बनी रही. किसानो को उनके परिश्रम का फल नहीं मिल रहा है.
देश को जातिवाद धर्मवाद के आधार पर बाँट कर वोट लेने की प्रक्रियाओं से हमारा आर्थिक कल्याण या सामाजिक सुधार नहीं हो सकता है.
अभी अमरीका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री नीरज कौशल द्वारा प्रस्तुत विचारों का उल्लेख मैं करना चाहूँगा जो इसका साक्षी है कि भारत की राजनीति किसानों के कल्याण एवं भारत की अर्थ व्यवस्था सुधारने में असफल क्यों रही है. आपकी सुविधा के लिए एवं आप स्वयं इन विचारों की उत्कृष्टता से लाभ उठाएं इसका उल्लेख आवश्यक है कि समाचार पत्र The Economic Times ने इस दृष्टि को अपने ०७ जनवरी २०१८ संस्करण में प्रकाशित किया है. इसको पढने के बाद आप यह समझ पायेंगे कि कितना बड़ा धोखा हमारी सरकारें जन समुदाय को देती आयी हें.
आपको भलीभांति इसकी जाकारी है कि चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियाँ किसानों के हित मैं कई मुफ्त सुविधाओं का एलान करती हें. मुफ्त उपहार के रूप में मुफ्त बिजली सेवाओं, मुफ्त सिचाई की सुविधाओं का एलान होता है. कृषि के लिए जो रक़म क़र्ज़ लिया जाय उसका बोझ किसानों पर ना पड़े इस सम्बन्ध में ऋण सम्बन्धी छूट का भी प्रावधान किया जाता है,

कृषि के लिए आवश्यक खाद एवं बीज की उपलब्धि कराने पर भी अनुदान की घोषणा की जाती है. बात यहाँ नहीं रुकती. साथ ही उत्पाद के लिए न्यूनतम मूल्य भी निर्धारित की जाती है इस आधार पर कि किसानों का आर्थिक निर्वाह संभव हो सके. अब आपको ऐसा लगेगा कि सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी देश के किसानों का अच्छा ख्याल रखती है और किसान की ज़िन्दगी में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होनी चाहिए. फिर भी भारतीय किसान आत्मा हत्या करते हें ताकि ज़िन्दगी की आर्थिक मुसीबतें उन्हें और परीशान न करें.
हमारी सरकारें अभी तक इस बात को समझने में सक्षम नहीं है कि किसानों की समस्यायों का समाधान तब होगा जब सरकार सही ढंग से सहायता करेगी. किसानो को ऊपर लिखित आर्थिक छूट देने से उनकी सही सहायता नहीं होती बल्कि देश की संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था को चोट पहुचती है और अंततः औसत भारतीय ग़रीब रहता है.
हमारे किसानों को सहायता चाहिए कृषि की उत्पादन क्षमता बढाने की ठोस वैज्ञानिक प्रकिया की. असल में कृषि की सहायता तब होगी जब किसानों की कृषि उत्पादन क्षमता बढाने की दिशा में ठोस क़दम उठाये जाएंगे.
किसानो की स्तिथि में सुधार नहीं होने का कारण यह भी है कि चुनाव में वोट जाति या धर्म के नाम पर दिया जाता है. इस तरह वोट देने की दुष्प्रवृत्ति से बचना चाहिए.
मुफ्त बिजली सुविधा, सिचाई के लिए मुफ्त पानी की सुविधा, न्यूनतम दाम उत्पादों के लिए दिया जाना बाज़ार विकृति पैदा करता है और बाज़ार प्रतिस्पर्धा को समाप्त करता है. इससे कृषि का नुक्सान होता है और किसान सरकारी मुफ्त उपहार पर निर्भर करता है. देश कि आर्थिक स्तिथि का समाधान सरकार से मिलने वाला अनुदान नहीं है.
देश को यह समझना चाहिए कि देश में स्वतन्त्रता के बाद लगभग ५५ सालों तक राज में लिप्त हुयी कांग्रेस पार्टी किसानों की समस्यायों को समझने में सक्षम नहीं है. साथ ही देश के सारे लोगों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि वंशवाद, जातिवाद या धर्मवाद से प्रभावित होकर वोट न दें. आपकी समृधि आपके हाथ में है. सही उपयोग अपने वोट का कर आप अपनी तकदीर बदल सकते हें. नहीं तो ग़रीबी का समाधान अचिंतनीय है.

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