Yogdan
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लिखना चाहूँ गीत मगर मैं लिख नहीं पाता हूँ ,
तूफानों से घिरी जिंदगी की मैं नाव चलाता हूँ ।
निज कर्मों को कोई न देखे औरों को धिक्कारे ,
इस युग में घटती नैतिकता के दोषी हैं हम सारे ।
इंशा बनना चाहूँ पर मैं बन नहीं पाता हूँ ।
लिखना चाहूँ गीत …..
आज गिरी है गद्य की गरिमा कविता हुई बेढंगी ,
नई धुनों में नाच रही होकर नारी अधनंगी ।
पश्चिम की इस दौड़ में क्यों मैं भी शामिल हो जाता हूँ ।
लिखना चाहूँ गीत ….
है कोई इंशान श्रेष्ठ जो भ्रष्टाचार मिटाये ,
रामराज्य की बात नहीं एक स्वस्थ राज्य ले आए ।
मैं साधारण एक नागरिक दर दर ठोकर खाता हूँ।
लिखना चाहूँ गीत …..
रावण, कंश भले थे, अब के दानव क्या क्या खेल दिखाएँ ,
राम कृष्ण की बात नहीं हम मानव तो बन जाएँ ।
कहीं और जाना है मुझको कहाँ चला जाता हूँ ।
लिखना चाहूँ गीत …..
देव कुमार जायसवाल
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