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संध्या….

Yogdan
Yogdan
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मन को सुख शांति सुकून मिले,
जब लंबी प्रतीक्षा से आवत संध्या,
गम दूरि भए सब कष्ट गए,
कुछ ऐसो प्रभाव दिखावत संध्या,

 

 

मन मोर खुशी से नाचत गावत,
दिल के सब तार बजावत संध्या,
दिन के सब ताप हरत संध्या,
निशि शीतल शांति को लावत संध्या,

 

 

करें बात निशि-वासर मिल,
जब चुपके चुपके आवत संध्या,
अस मन भावन सुंदर संध्या,
फिर क्यों  हर पल नहिं आवत संध्या,

 

 

कैसे कहूंं तुमसे संध्या ,
केहि विधि मन को बहकावत संध्या,
जब से तुम दूर गई संध्या,
तब से हर रोज रुलावत संध्या।

 

 

 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। इनसे संस्‍थान का कोई लेना-देना नहीं है।

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